Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan Author(s): Saumyagunashreeji Publisher: Prachya VidyapithPage 73
________________ करिए जिनदर्शन से निज दर्शन ... 23 आपसी मतभेदों के चलते -चलते कई परिवर्तन जिन पूजा में आए। तत्समयवर्ती वैदिक एवं हिन्दू परम्परा में भी नित्य स्नान आदि की प्रवृत्ति बढ़ रही थी, जिसका प्रभाव भी जैन समाज पर पड़ा। कई अन्य धर्मानुयायी जैनाचार्यों द्वारा प्रतिबोधित होकर जैन धर्म का स्वीकार करते थे किन्तु पूर्व संस्कार एवं संस्कृति का मिश्रण कहीं न कही हो ही जाता था। जिन धर्म अनुयायियों का रूझान अन्य परम्पराओं की ओर न बढ़ जाए इसलिए गीतार्थ आचार्यों द्वारा कुछ आवश्यक परिवर्तन लाए गए। शास्त्रों में यद्यपि नित्य प्रक्षाल का विधान नहीं था फिर भी इसका विरोध या मनाई भी कहीं परिलक्षित नहीं होती थी अतः आचार्यों ने नित्य प्रक्षाल का विधान किया होगा । शंका- पूर्व काल में नित्य स्नान नहीं होती थी इसके आगमिक प्रमाण बताईए ? समाधान- पूजा सम्बन्धी विषयों का प्रतिपादन करते हुए हमने आगम काल से लेकर अब तक के अनेक ग्रन्थों का अवलोकन किया है जिनमें जिन पूजा सम्बन्धी उल्लेख मिलते हैं। राजप्रश्नीय एवं जीवाजीवाभिगम सूत्र में नए उत्पन्न होने वाले देवों द्वारा की गई पूजा का वर्णन है । जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में इन्द्रों द्वारा भगवान ऋषभदेव के जन्माभिषेक और ज्ञाताधर्मकथासूत्र में विवाह के प्रसंग पर द्रौपदी द्वारा जिनपूजा करने का वर्णन है। राजप्रश्नीयसूत्र में भी यही वर्णन मिलता है। ये सभी पूजाएँ खास प्रसंगों पर की गई थी। आगम सूत्रों के बाद भाष्य आदि व्याख्या साहित्य में भी स्नान आदि का निरूपण करते हुए यात्रोत्सव आदि सामूहिक प्रसंगों पर सर्वोपचारी पूजा एवं जिन स्नान की क्रिया होती थी। वाचक प्रवर उमास्वाति ने प्रशमरति प्रकरण में पूजा विधान को गृहस्थ का सामान्य कर्तव्य बतलाया है, परन्तु उसमें स्नान - विलेपन आदि का सूचन नहीं है। इससे यह प्रमाणित होता है कि गृहस्थ जिन पूजा को नित्य कर्तव्य के रूप में अवश्य करता था किन्तु जल - विलेपन आदि से वह शून्य था । मध्यवर्ती आचार्य हरिभद्रसूरि ने अपने ग्रन्थों में यद्यपि स्नान विलेपन आदि पूजा का उपदेश दिया है फिर भी पूजा विषयक दस ग्रन्थों में से तीन ग्रन्थों में उन्होंने सर्वोपचारी पूजा का भी वर्णन किया है। उनके समय में अधिकतर त्रिकोपचारी, चतुष्कोपचारी, पंचोपचारी एवं अष्टोपचारी पूजाओं का ही प्रचलनPage Navigation
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