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जिन प्रतिमा पूजनीय क्यों? ...15 स्नात्रादिदर्शने, धर्मक्रियार्थं तत्रैव स्थितानां अभ्युत्थानं, तदलोके अभियानं च तदगमे शिरस्यंजलि संश्लेष: स्वयमासन ढौकनम् ।।125॥
__ आसनाभिग्रहो भक्त्या, वंदना पर्युपासनम् ।
तद्यानेनुगमश्चेति, प्रतिपत्तिरियं गुरोः ।।127।। जिन मंदिर में गुरु महाराज के आने पर उनका आसन आदि ग्रहण करना चाहिए तथा विधिवत वंदना और उपासना करनी चाहिए।
तपागच्छाचार्य विजयलब्धिसूरि एवं आचार्य कीर्तियशसूरिजी लब्धिप्रश्न एवं सन्मार्ग में इसी का समर्थन करते हुए कहते हैं कि जिनमूर्ति को वंदन करने के बाद गुरु मूर्ति को वंदन कर सकते हैं। तत्त्वत्रयी में भी देव के बाद गुरु का स्थान है इसलिए परमात्मा के सामने गुरु को वंदन करना दोषपूर्ण नहीं है।
शंका- खंडित प्रतिमा की पूजा हो सकती है?
समाधान- शास्त्र मर्यादा के अनुसार यदि प्रतिमा का कोई मुख्य अंग जैसे कि मस्तक आदि खंडित हो जाए तो गीतार्थ गुरु की अनुमति पूर्वक उसे विसर्जित कर देना चाहिए। परंतु अंगुली, नासिका आदि उपांग खंडित होने पर लेप एवं अठारह अभिषेक करके उसकी पूजा चालू रखनी चाहिए। नवखंडा पार्श्वनाथ की प्रतिमा खंडित अवस्था में भी पूजी जाती है यह इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
शंका- जिन प्रतिमा कैसी बनवानी चाहिए?
समाधान- व्यवहारभाष्य के अनुसार प्रासादिक लक्षणों से युक्त अलंकारमय जिन प्रतिमा बनवानी चाहिए। जैसा कि कहा गया है
पासाईआ पडिमा, लक्खणजुत्ता समस्थलंकरणा।
जइ पल्हाएइ मणं, तह निज्जरमो विआणाहि ।। __सर्व प्रकार के अलंकारों से शोभायमान, लक्षण युक्त प्रसन्नमुद्रा वाली जिनप्रतिमा निर्मित करवानी चाहिए। ऐसी प्रतिमा के दर्शन से मन में प्रसन्नता एवं कर्मों की निर्जरा होती है। ____ चक्षु, तिलक, श्रीवत्स, केशावली आदि से युक्त प्रतिमा अलंकार युक्त प्रतिमा कहलाती है।
शंका- प्राचीन तीर्थों में जहाँ अधिक जिनबिम्ब हैं और पूजा-प्रक्षाल आदि