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जिन प्रतिमा पूजनीय क्यों? ...5 केवली अवस्था और छद्मस्थ अवस्था का स्तर भेद है।
शंका- धर्मचक्र के आस-पास में स्थित हिरण युगल किसके सूचक हैं?
समाधान- संगीत श्रवण में हिरण की तन्मयता जग प्रसिद्ध है। जो आसक्ति और स्थिरता संगीत श्रवण में हिरण की होती है, वैसी ही स्थिति जिनवाणी श्रवण के समय हमारी बने। मृग जिस चपलता से दुश्मन को देखकर भागता है, हम भी राग-द्वेष रूपी शत्रुओं के उपस्थित होने पर वहाँ से चलायमान हो जाएं एवं जिनेश्वर परमात्मा की शरण ग्रहण करें इसी हेतु से जैनाचार्यों ने यह धर्मचक्र के आस-पास हिरण युगल का चिह्न बनाया है।
शंका- विश्व दर्शन में स्थापना निक्षेप का क्या महत्त्व है?
समाधान- जैन धर्म में सभी क्रियाएँ साक्षी पूर्वक करने का विधान है। विशेषावश्यक भाष्य में कहा गया है
गुरु विरहंमि ठवणा, गुरुवएसो वंदणसणत्यं च ।
जिणविरहमि जिणबिम्ब, सेवणामंतणं सहलं च।। परमात्मा एवं गुरु की अनुपस्थिति में उनकी स्थापना को ही उनके समान मानकर प्रत्येक क्रिया करनी चाहिए। अनुयोगद्वार में दस प्रकार के स्थापना की चर्चा की गई है। जितने भी सूत्र-सिद्धान्त हैं वे सभी जिनेश्वर परमात्मा के ज्ञान की अंश रूप स्थापना है। यदि स्थापना को निरर्थक माने तो जिनप्रतिमा, जिनागम आदि सभी निरर्थक हो जाएंगे जबकि देव मूर्ति एवं गुरु मूर्ति की स्थापना करने का ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय विधान है। आकार या निराकार किसी न किसी रूप में अपने आराध्य या Role Model की कल्पना सभी के मस्तिष्क पटल में होती है, उसके बिना जीवन में आगे बढ़ना या किसी भी क्रिया को करना नामुमकिन है। जो लोग स्थापना का विरोध करते हैं वे भी किसी न किसी रूप में उसी को आधार बनाकर अपनी आराधना करते हैं। जैसे कि मुसलमान स्थापना को नहीं मानते पर नमाज पढ़ते समय वे अपने मुँह को मक्का के सामने ही रखते हैं। जो आस्था हमारी मूर्ति के लिए है वही आस्था उनकी मस्जिद के प्रति होती है। बस वह मूर्ति में सीमित न रहकर मस्जिद में विस्तृत हो गई है। अत: किसी न किसी रूप में स्थापना का महत्त्व हर जगह स्वीकार्य है। __ शंका- जिन प्रतिमा को नमस्कार करने से तो मूर्ति को नमस्कार होता है, भगवान को नहीं, क्योंकि भगवान तो मूर्ति से भिन्न हैं?