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सामूहिक आराधना क्यों की जाए? ...3 समाधान- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समुदाय में रहना उसका स्वभाव एवं आवश्यकता है। सामूहिक स्तर पर की गई क्रियाएँ उसे विशेष रूप से प्रभावित करते हुए जीवन विकास हेतु प्रोत्साहित करती है। इसी हेतु को ध्यान में रखते हुए जैनाचार्यों ने सामूहिक आराधना करने का विधान किया है।
सामूहिक अनुष्ठान में सामान्य वर्ग सरलता से एवं अधिक संख्या में जुड़ता है। जिनके मन में क्रिया के प्रति रुचि या आकर्षण न हो उन्हें जोड़ने का भी यह श्रेष्ठ उपाय है। नूतन आराधकों के लिए सीखने का अपूर्व अभियान है वहीं कमजोर मन वाले लोगों के लिए आगे बढ़ने का सौपान है। इसी के साथ आपसी प्रेम एवं सौहार्द में वृद्धि होती है तथा भावोल्लास भी बना रहता है।