Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 47
________________ शंका नवि चित्त धरिये ! ...xiv हाथ जिनका थामकर, किया संयम मार्ग आरोहणम् अनुसरण कर पाऊं उनका, है यही मन वांछितम् सज्जन कृपा से होत है, दुःसाध्य कार्य शीघ्रतम् हो वंदना नित वंदना, कृपा सिन्धु कार्य सिद्धिकरम् ।।7।। कल्पतरू सा सुख मिले, शरणागति सौख्यकरम् तप-ज्ञान रूचि के जागरण में, आधार हैं जिनका परम् मुझ जीवन शिल्पी-दृढ़ संकल्पी, गुरू 'शशि' शीतल गुणकरम् हो वंदना नित वंदना, कृपा सिन्धु कार्य सिद्धिकरम् ।।8।। 'प्रियदर्शना' सत्प्रेरणा से, किया शोध कार्य शतगुणम् गुरु भगिनी मंडल सहाय से, कार्य सिद्धि शीघ्रतम् उपकार सुमिरण उन सभी का, घरी भावना वृद्धिकरं हो वंदना नित वंदना, कृपा सिन्धु कार्य सिद्धिकरम् ।।७।। जिन स्थानों से प्रणयन किया, यह शोध कार्य मुख्यतम् पार्श्वनाथ विद्यापीठ (शाजापुर, बनारस) की, मिली छत्रछाया सुखकरम् जिनरंगसूरि पौशाल (कोलकाता) है, पूर्णाहुति साक्ष्य जयकरं हो वन्दना नित वन्दना, है , नगर कार्य सिद्धिकरम् ।।10।। साधु नहीं पर साधकों के, आदर्श मूर्ति उच्चतम् श्रुत ज्ञानसागर संशय निवारक, आचरण सम्प्रेरकम् इस कृति के उद्धार में, निर्देश जिनका मुख्यतम् शासन प्रभावक सागरमलजी, किं करुं गुण गौरवम् ।।11।। अबोध हूँ, अल्पज्ञ हूँ, छदस्थ हूँ कर्म आवृतम् अनुमोदना करुं उन सभी की, त्रिविध योगे अर्पितम् जिन वाणी विपरीत हो लिखा, तो क्षमा हो मुझ दुष्कृतम् श्रुत सिन्यु में अर्पित करूं, शोध मन्थन नवनीतम् ।।12।।

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