Book Title: Shanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 44
________________ जिन पडिमा जिन सारखी जाणो भक्ति योग साधना का मुख्य अंग और शक्ति संचार का मुख्य स्रोत भी है। गीतार्थ आचार्यों के अनुसार इस पंचम काल में भक्ति ही मुक्ति का परम आधार बनती है, बशर्ते वह भक्ति उत्कृष्ट श्रद्धा भावों से युक्त हो। भक्त के मन में रही हुई बिन्दु रूप शंका भी भविष्य में विशाल सिंधु बनकर मुक्ति में बाधा उपस्थित करती है। शंका का सम्यक समाधान प्राप्त न होने पर सर्वस्व न्यौछावर एवं पूर्ण समर्पण की भावना भक्त मन में प्रस्फुटित हो ही नहीं सकती। इसी आशय से शंका-समाधान का प्रचलन आगम युग से रहा है। आगमों में 'पृच्छना' को स्वाध्याय का एक प्रकार माना है। विस्मय, जिज्ञासा, यथार्थ ज्ञान, आचारविचार आदि में शुद्धता की अपेक्षा से पूछे गए प्रश्न एवं उनका सम्यक समाधान भव्य जीवों के लिए विविध प्रकारेण उपयोगी बनता है। श्री भगवतीसूत्र में गौतम स्वामी द्वारा पूछे गए 36,000 प्रश्नों का (शंकासमाधान) सुंदर संकलन आज भी धर्म जिज्ञासुओं एवं शोध कर्ताओं के लिए lifeTime Offer के समान है। प्राचीन एवं अर्वाचीन युग में भी ऐसे ही कई प्रश्नोत्तरों का संकलन समयसमय पर प्रस्तुत होता रहा है। वर्तमान के अनेक विश्रुत आचार्यों एवं मुनि भगवंतों ने भी अपनी प्रज्ञा के आधार पर सन्मार्ग प्रदर्शित करने का सार्थक प्रयास किया है। जिनमंदिर, प्रतिमा पूजन, मंदिर व्यवस्था, विधि-अविधि, पूजनमहापूजन, मंदिरों में देवी-देवताओं के स्थान आदि अनेक ऐसे विषय हैं जिनके संदर्भ में विविध प्रकार के प्रश्न एवं तर्क रूचिवन्त श्रावक वर्ग के द्वारा किए जाते हैं। परम्परा भेद, विचार भेद, मान्यता भेद आदि के कारण कई भिन्नताएँ विभिन्न जैन शाखाओं में ही देखी जाती है। जीव दया राशि का व्यय, देवद्रव्य एवं निर्माल्य द्रव्य का उपयोग, जिनपूजा में हिंसा है या नहीं? वर्तमान की पूजा-प्रतिष्ठा आदि में बढ़ते आडंबर एवं मंदिरों में आधुनिक यांत्रिक साधनों का प्रयोग कहाँ तक औचित्यपूर्ण है? देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए या

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