Book Title: Shaddarshan Samucchaya Part 02
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashak

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Page 14
________________ षड्दर्शन समुच्चय, भाग-२ (११-६११) पृ. नं.. ३०८ ३०९ ३१० ३११ ३१२ ३१४ २८७ ३१५ ३१६ २९१ ३१७ ३१८ २९४ ३२० ३२१ क्रम विषय श्लोक नं. प्र. नं. | क्रम विषय श्लोक नं. १७६ कारिका-४-५-६ (प्रमाण स्वरूप) २८३ २०४ सिद्धि का भेद-प्रभेद (का. ५१) १७७ कारिका-७ (प्रत्यक्ष-अनुमान प्रमाण) २८४ | २०५ कारिका-५२ १७८ कारिका-८ | २०६ तन्मात्रकृत सर्ग-भौतिकसर्ग (का. ५३) ___ (प्रकृति की अप्रत्यक्षता का कारण) २८४ | २०७ का.५४-५५ १७९ सत्कार्यवाद - उनके पांच हेतु (का. ९) २८५ |२०८ का. ५६ १८० प्रकृति का स्वरूप (का. १०-११) २८५ | २०९ का. ५७-५८ १८१ सत्त्वादि तीन गुणो का स्वरूप (का. १२) २८६ २१० का. ५९-६० १८२ तीन गुण के उदाहरण (का. १३-१४) २११ का. ६१-६२ १८३ अव्यक्त का स्वरुप (का. १५-१६) २१२ का. ६३-६४ १८४ पुरुष का अस्तित्व (का. १७) | २१३ का. ६५-६६ १८५ पुरुष बहुत्व (का. १८) । |२१४ का. ६७ १८६ पुरुष का स्वरूप (का. १९-२०) | २१५ का. ६८-६९-८० १८७ पुरुष-प्रकृति का संयोग (का. २१) | २१६ का. ७१-७२-७३ १८८ सृष्टिक्रम (का. २२,२३,२४,२५,२६) २९४ |२१७ बंधन-मक्ति की विचारणा १८९ मन का स्वरुप (का. २७) २९६ | भाग-१ परिशिष्ट विभाग १९० दस इन्द्रियों की वृत्तियाँ (का.२८) परिशिष्ट-१- वेदांत दर्शन १९१ त्रिविध अन्तःकरण के व्यापार (का.२९) |२१८ वेदांत दर्शन १९२ कारिका-३० २१९ ब्रह्म का स्वरुप १९३ जिज्ञासापूर्ति (का. ३१) | २२० जीव का स्वरुप १९४ पुरुष के प्रयोजन वश करणों २२१ ईश्वर का स्वरूप __ की प्रवृत्ति (का. ३२) | २२२ ईश्वर और जीव १९५ अंत:करणादि के प्रकार (का. ३३) | २२३ अज्ञान १९६ कारिका ३४-३५-३६ |२२४ समष्टि अज्ञान : माया १९७ बुद्धि की प्रधानता (का. ३७) | २२५ व्यष्टि अज्ञान : अविद्या १९८ पंच तन्मात्रा का स्वरूप (का. ३८-३९) ३०० २२६ अविद्या का प्रथम लक्षण १९९ सूक्ष्म शरीर (का. ४०-४१) | २२७ अविधा का द्वितीय लक्षण २०० प्रयोजन (का. ४२) | २२८ अविधा का तृतीय लक्षण २०१ कारिका (का. ४३) ३०१ | २२९ अविद्या के दो प्रकार २०२ कारिका (का. ४४-४५-४६) ३०२ / २३० अध्यास की आवश्यकता २०३ प्रत्ययसर्गादि का निरुपण २३१ माया और अविद्या (का. ४७-४८-४९-५०) ३०३ | २३२ अविद्या की भावरूपता २९७ ३२७ ३२७ ३३५ ३३७ ३३८ ३३९ ३३९ ३४३ ३४५ ३४५ ३४६ ३४७ ३४८ ३५० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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