Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 1
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad
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शब्दरत्नमहोदधिः।
[करघर्षिन-करणव्यापार
करघर्षिन् पुं. (कराभ्यां घर्षोऽस्त्यस्य करघर्षं+ इनि) | करटक पुं. (करट एव कन्) 0132, नास्ति, योशनु
६ वलवान साधन, थ रवै.यो. (न. २॥स्त्र प्रवतावनार सुत, धनु नाम.. ___ कर+घृष+णिनि) हाथ घसना२. हाथ योगना२. करटा स्त्री. (करट+टाप) घ ४ भ२४साथी होडवा करङ्क पुं. (कस्य मस्तकस्य रङ्क इव यद्वा कीर्यते हे तेवी. य.
जलमत्र) भस्तर, भंस, ४२वो, नाजायेरनी आयसी, | करटिन् पुं. (करट+इनि) हाथी, ४ -दिगन्ते श्रूयन्ते भाथानी जोपरी, मे. तनी शे२७, शरीरनु, ई, मदमलिनगण्डाः करटिनः-रसगं०, -कटीतटपटाभवत्
पात्र-विशेष - ताम्बूलकरङ्कवाहिनी-कादम्बरी । । करटिचर्मणि बह्मणि-लङ्केश्वररचितशिवस्तुतिः ४. । करशालि पं. (करङ्क इति नाम्ना शालते शाल+इन) | करटु पुं. (कृ+अटु) तन पक्षी. (७२.४टिया).
2. तनी शेवडी, मे. तनी. २सत्म.३८. शे२... करण न. (क्रियतेऽनेन कृ+ल्युट) व्या5२९॥२॥स्वप्रसिद्ध करच्छद पुं. (कर इव आवारकश्छदोऽस्य) मोट સાધકતમ-કરણ, કાર્યની સિદ્ધિમાં ઉત્કૃષ્ટ ઉપકારક, वृक्ष, सिन्दुरपुष्पी वृक्ष. -करच्छदा.
-न तस्य कार्य करणं च विद्यते-श्रुतिः । इन्द्रिय. करज पुं. (करे जायते जन्+ड) न-तीक्ष्णकरजक्षुण्णात् -आत्मन्यात्मानमेव व्यपगतकरणं पश्यतस्तत्त्वदृष्ट्या
-वेणी० ४।१, वाघन नामर्नु च द्रव्य, ४२महान वेणी० -वपुषा करणोज्झितेन सा निपतन्ती पतिमप्यॐउ -करञ्जकः स्यात् करजः पत्रसूची पलाशनः । पातयत्-रघु० ८।३८, शरीर -उपमानमभूद् विलसिनां मेदिनी; -न छिन्द्यात् करजैस्तृणम्-मनु० ४।७०. करणं यत् तव कान्तिमत्तया-कुमा० ४।५; BAL, (त्रि. कराज्जायते जन्+ड) डायम थयेल, ७२थी. अनुष्ठान, १२05 व्यापार -अधिष्ठानं तथा कर्ता ઉત્પન્ન થનાર, કિરણ થકી પેદા થનાર.
करणं च पृथग्विधम् -भग० १८।१४; योतिषशास्त्र करजाख्य न. (करजस्य व्याघ्रनखस्याख्या इव आख्या પ્રસિદ્ધ બળ વગેરે કરણ, સંગીતશાસ્ત્ર પ્રસિદ્ધ તાલની यस्य) नमतो नामर्नु मे. सुगंधी द्रव्य.
व्यवस्था ४२नारे मे २र्नु ताउन. -संस्थानं ताडनं करजाल न. (कराणां जालम्) २४नो. समूड-४थ्यो. रोधः करणानि प्रचक्षते-राजकन्दर्प; ५२मेश्व२, तर, करजोडि पुं. ते नमर्नु मे वृक्ष.
अंत:४२५, धान्यन ४५, भैथुन, ४स्तावे४ . करज पूं. (कं शिरः जलं वा रञ्जयति अण) २४ अर्थेऽपव्ययमानं तु करणेन विभावितम्-मनु० ८।४१;
वृक्ष, भांशनु, -यस्तु संवत्सरं पूर्णं दद्याद् | शरीरना अवयवो, विषय -करणं कारणं का विकत्ता दीपं करजके -महा० १३११२८1८, २महान जाउ च मतो गुरुः-विष्णुस०. (पं. क+ल्यट) डायस्थ- पादपानां च या माता करञ्जनिलया हि सा - વૈશ્ય થકી શૂદ્ર સ્ત્રીને પેટે પેદા થયેલ પુત્ર - महा० २।२३९।३५, - करञ्जकः
कायस्थे साधने क्लीबं पुंसि शूद्राविशोः सुतेकरञ्जफल पुं. (करञ्जस्य फलमिवाम्लं फलमस्य) ब्रह्मवैवर्तः ख० १०; शाति. महा२. डढेल. क्षत्रिय दोन , पित्य. वृक्ष. (न० ष० त०) ७२०४नुं સ્ત્રીના પેટે પેદા થયેલ પુત્ર, વર્ણસંકર જાતિનો ३१ - करञ्जफलकः ।
से मेह. करट पुं. त्रि. (किरति मदम् कृ+अटन् के कुत्सितं | करणत्राण न. (करणैः हस्तादिभित्रायते त्रै+ल्युट) रटति वा रट्+अच्) थान, गंडस्थल -कथं हि ___ माथु, मस्त.. भिन्नकरटं पद्मिनं वनगोचरम् - महा० ३।२७७।३८, - करणत्व न. (करणस्य भावः त्व-तल्) ४२५५, आगाडी -वरमिह गङ्गातीरे सरटः करटः - गङ्गास्तोत्रे; साधन५j, ४२वा५. -करणता ।
सुंमार्नु भयवास, 1.5६ वगेरे श्राद्ध, करणनियम पुं. (करणस्य नियमः) छन्द्रियनो नियड, નિંદવા યોગ્ય ધંધો કરી ગુજરાન ચલાવનાર પુરુષ, | ઇન્દ્રિયને વશમાં રાખવી તે, ઇન્દ્રિયોને વશમાં કરવાનો નાસ્તિક, પતિત બ્રાહ્મણ, પાખંડ મતાનુસારી, એક नियम. જાતનું વાદ્ય, કેરડાનું ઝાડ, કાકીડો, ચોરી કરવાનું | करणव्यापार पुं. (करणजन्यव्यापारः) व्या४२५सिद्ध શાસ્ત્ર બનાવનાર કર્મીસુત.
કરણજન્ય વ્યાપાર, તે તે ઇન્દ્રિયોનો વ્યાપાર
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