Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 1
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad

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Page 806
________________ गाढावटी-गाथक शब्दरत्नमहोदधिः। ७५९ गाढावटी स्त्री. (गाढा दृढा वटी वटिका यत्र) शे–४ | गातुविद् त्रि. (गातुं वेत्ति विद्+क्विप्) यन. नार वी. मे २मत -नौकैका वटिका यस्य विद्यते ___ गवैयो, २स्तो 21-1२, 3414. ना२. खेलते यदि । गाढावटीति विख्याता पदं तस्य न गात त्रि. (गै गाने तृच्) ना२, आयन. २८२. दुष्यति ।। गात्र (चुरा. आत्म. अ. सेट-गात्रते) शिथिलता थवी, गाणकार्य त्रि. (गाणकारौ भवः ण्य) 1951NMi थन२. शिथिल थj, ढीला य.. गाणगारि पुं. (गणगावस्य अपत्यं इञ्) ते. नमन। गात्र, गात्रक न. (गै+ष्ट्रन् गातुरिदं वा अण् । मे. मुनि. गात्र+स्वार्थे क) शरी२ - अपचितमपि गात्रं गाणपत त्रि. (गणपतेरिदं अण्) पति संधी, व्यायतत्वादलक्ष्यम्-श० २।४, - गुरुपरितापानि न गपतिन. ते गात्राण्युपचारमर्हन्ति-श० ३।१८, uथानी. पी.6, गाणपत्य त्रि. (गणपतेर्भावः पत्यन्तत्वात् यक्) *धा वगैरे. ગણપતિપણું, ગણપતિ સ્વરૂપ. | गात्रगुप्त पुं. श्री. नी. १६६५ नमनी 42२४थी. गाणिक त्रि. (गणं वेत्ति-अधोते वा उक्थादि ठक्) उत्पन्न येतो मे पुत्र.. ९, सूत्र वगेरे मना२, सूत्र न२, गात्रभङ्ग पुं. (गात्रस्य भङ्गः) शरीरनु मing ते. ગણસૂત્રમાં કુશળ. गात्रभङ्गा स्त्री. (गात्रस्य भङ्गो अवसादो यस्याः) शूशाली गाणिक्य न. (गणिकानां समूहः यञ्) Augustralia | નામની એક વનસ્પતિ. વેશ્યાનો સમૂહ. गात्रमार्जनी स्त्री. (गात्रं मृज्यतेऽनया) शरी२. साई गाणिन पुं. (गणिनोऽपत्यादि) 800 पुत्र छात्र.. २वा वस्त्र-ut.. गाण्डव्य पुं. (गण्डोरपत्यादि गर्गादि० यञ्) गंडुन गात्ररुह न. (गात्रे रोहति रुह+क) वटु. પુત્ર કોઈ ઋષિ. गात्रवत् पुं. श्री. नी. मे. पुन.. (त्रि.) सुं६२. शरीरवाणु. गाण्डि(ण्डी) स्त्री. (गडि+इन्) भन्थि-is. गात्रविन्द पुं. श्री. नो मे. पुत्र.. गाण्डिव, गाण्डीव पुं. न. (गाण्डिरस्त्यस्य संज्ञायां व) | गात्रसंकोच पुं. (गात्रस्य सङ्कोचः) शरी२नो संजोय. स ननु, धनुष्य -गाण्डिवं स्रंसते हस्तात्-भग- १९३९। | गात्रसंकोचिन् पुं. (गात्रं सङ्कोच धनुष्य, (पुं.न.) -तच्च दिव्यं धनुःश्रेष्ठं ब्रह्मणा | णिच्+णिनि) शरी३. sizावायो सेरो-शेजा नाम प्राए. निर्मितं पुरा । गाण्डीवमुपसंगृह्य बभूव मुदितोऽर्जुनः- | गात्रसंप्लव पुं. (गात्रेण संप्लवते सम्+प्लु+अच्) महा० ४।४१।३६ ।। ___eq५क्षी-4180i w.sी. भा२।२. ५६.. गाण्डिविन, गाण्डीविन्, गाण्डीवधन्व पुं. (गाण्डिव+ | गात्रसंमित त्रि. (गात्रं सम्मितं संपूर्णं यस्य) संपू इनि) अर्जुन, साहार्नु काउ. શરીરવાળું, ત્રણ મહિના ઉપરનું ગર્ભમાં રહેલ પ્રાણી. गातव्य त्रि. (गै+तव्यच्) Quan योग्य, म.न. ४२वा | गात्रानुलेपनी स्त्री. (गात्रमनुलिप्यतेऽनया लिप् करणे योग्य. ल्युट्) शरीरने सुगंधा ४२वा माटेनी शरीर 6५२ गातागतिक त्रि. (गतागतेन निवृत्तम् ठक्) ४4l- લપેટવાની એક જાતની વર્તી, શરીર ઉપર લેપન આવવાથી થયેલ. કરવા યોગ્ય ઘરેલું અથવા પીસેલું સુગન્ધિ દ્રવ્ય. गातानुगतिक त्रि. (गतानुगतेन निवृत्तम्) रिया | गातावरण न. (गात्रमावृणोति आ+वृ+ल्यु) शरीर પ્રવાહથી થયેલ. ઢંકાય તેવું બખ્તર. गातु पुं. (गै गाने, गाङ् गतौ गा स्तुतौ वा कर्तृभावादौ तुन्) | गात्रोत्सादन न. (गात्र+उत्+सद्+णिच्+ल्युट) २२२२. ओयल, मम२, iad, भुसा३२, 64ाय, भा, સુગંધિત પદાર્થથી સુગંધી કરવું તે. मायुषनी गति, स्तवन, पृथ्वी. (त्रि.) हीधी, ना२ | गाथ त्रि. (गा+थन्) स्तोत्र को३, २८७, वाध्यमात्र. गवैयो, गमन ४२वा योग्य. (न.) स्तोत्र, गायन, | गाथक त्रि. (गायतीति गै+थकन्) गवैयो, आयन री जात. (त्री.) पृथ्वी. | ઉપજીવિકા કરનાર, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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