Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 1
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad

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Page 810
________________ गालोड्य-गिरिक्षिप] शब्दरत्नमहोदधिः। ७६३ गालोड्य न. (गो+आ+लोड्+यत्) ते. ना. म. | गिरि पुं. (गिरति धारयति पृथ्वी ग्रियते स्तूयते गुरुत्वाद्वा धान्य, भणली४. गृ+इ+किच्च) पर्वत -पश्याधः खनने मूढ ! गिरयो गालोडित त्रि. (गालोडः उन्मादरोगः संजातोऽस्य इतच्) न पतन्ति-शृङ्गार० १९, -ननु प्रवातेऽपि निष्कम्पा 6माह रोगवा, उन्मत्त, भू -उन्मादशीले रोगाते गिरयः-श० ६, -मेरु-मन्दर- कैलास-मलया; मूर्ख गालोडितः स्मृतः । गन्धमादनः । महेन्द्रः श्रीपर्वतश्च हेमकूटस्तथैव च । गावल्गणि पुं. (गवल्गणस्य अपत्यम् इञ्) udent अष्टावेते संपूज्या गिरयः पूर्वदिक् क्रमात् ।। - પુત્ર સંજય. शब्दार्थचि०, मे. तनो diनि संन्यासी, गाविष्ठिर पुं. (गविष्ठिरस्य अपत्यम् अञ्) विष्ठिर પરિવાજકની એક ઉપાધિ, જેમ આનન્દગિરિ વગેરે, ऋषिनो पुत्र. नेत्रनो मे रोग, ६, वृक्ष, मेघ, पारानो मेड गावेधुक त्रि. (गवेधुकायाः विकारः विल्वा० अण्) ५२नो होषपूथ्य, म05नी. संध्या. (स्री. गृ+इ ગવેધુ નામના ધાન્યનો ચરુ વગેરે. किच्च) नानी २31, गजी ४. गाह (भ्वा. स. पर आत्म० सेट-गाहते) प्रवेश ४२वो गिरिक पुं, (गिरौ के+क) शिव. (त्रि. गिरिमवः कन्) -गाहन्तां महिषा निपानसलिलं शृङ्गैर्मुहुस्ताडितम्- श० पर्वतमा थनार. २/६, -गाहितासेऽथ पुण्यस्य गङ्गामूर्तिमेव द्रुताम् गिरिकच्छप पुं. (गिरौ पर्वतस्य द• कच्छपः) पतन भट्टि० ३२।११, पेस, अव+गाह् अवगाहते न्हा, ગુફામાં રહેનાર કાચબો. स्नान. ४२j - स्वप्नेऽवगाहतेऽत्यर्थं जलम् - याज्ञ० गिरिकण्टक पुं. (गिरेः कण्टक इव भेदकत्वात्) इंद्रनु ११२७२, वि+ गाह् विगाहते 6५२न. म. मी. व . -विपमोऽपि विगाह्यते नयः कृततीर्थः पयसमिवाशयः गिरिकदम्ब पुं. (गिरौ भवः कदम्बः) ५६ ४६र्नु कि० २।३। 3. गिरिकदली स्त्री. (गिरौ जाता कदली) २. ३०, गाह पुं. (गह - गहने भावे कर्मणि वा षञ्) डन, ___५ . उप. Dua, हुप्रवेश. (त्रि. गाह्+कर्तरि अच्) प्रवेश. ४२नार, गिरिकन्दर पुं. (गिरेः कन्दरः) पर्वती. शु. पसना२. गाहन न. (गाह्+ ल्युट्) प्रवेश, प्रवेश ४२वी, पेस, गिरिकर्णिका स्री. (गिरिः कर्ण इव यस्याः) पृथ्वी, અપરાજિતા-ગરણી વનસ્પતિ, જવાસો, ઘમાસો. न्हावं, स्नान. गिरिकर्णी स्त्री. (गिरेर्बालमूषिकायाः कर्ण इव पत्रमस्याः) गाहित त्रि. (गाह+क्त) प्रवेश ४३८, सेव, न्यायेद. અપરાજિતા-ગરણી વનસ્પતિ, જવાસો વનસ્પતિ गाहितृ त्रि. (गाह्+तृच्) प्रवेश ४२८२, पेसना२, स्नान - વિષ્ણકાન્તા नार. गिरिकल्प त्रि. (गिरि+कल्पप्) पति स२j, पर्वत. गिद पुं. २५पास हवी. गिध्र त्रि. (गिरिम् धारयति धृ+क नि० रिलोपः) पर्वतन । गिरिका स्त्री. (गिरिरेव क टाप्) नानी ४२७, वसुनी ધારણ કરનાર. पत्नी -वसोः पत्नी तु गिरिका कामकालं न्यवेदयत् । गिन्दक पुं. (गेन्दुक पृषो.) वृक्ष. ऋतु कालमनुप्राप्ता स्नाता पुंसवने शुचिः ।। गिर स्त्री. (गृ+क्विप्) all, वाय, सरस्वतीवी महा०१।६३।३९ । वचस्यवसिते तस्मिन् ससर्ज गिरमात्मभूः- कु० गिरिकाण त्रि. (गिरिणा नेत्ररोगविशेषेण काणः) में २५३।, - भवतीनां सूनृतयैव गिरा कृतमातिथ्यम् પ્રકારના નેત્ર રોગથી કાણો થયેલ. श० १। गिरिक्षित् पुं. (गिरि वाचि क्षिपति क्षि वासे क्विप्) गिरण न. (गृ+ल्युट्) , गजी. ४g. સ્તુતિરૂપ વાક્યમાં રહેલ પરમેશ્વર. गिरा स्त्री. (गिर+टाप्) ausl. -तां गिरां करुणां श्रुत्वा- | गिरिक्षिप त्रि. (गिरिं क्षिपति क्षिप्+क) पवतन. ५५. दशरथविलापनाटकम् वाश्य, स्तुति, सरस्वती हेवी, | ઊંચા કરી શકે એવા સામર્થ્યવાળું. (૬) તે નામનો भाषा, सवा. અધૂરનો નાનો ભાઈ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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