Book Title: Saptopadhanvidhi
Author(s): Mangalsagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 16
________________ नोपधान० १६ ॥ सव्वैसि साहूणं, नमो तिगुप्ताण सव्वलोए वि । तह नियमनाणदंसण, जुत्ताणं बंभयारीणं ॥ ५ ॥ एसो पर मेट्ठीगं, पंचह वि भावओ नमोकारो। सव्वरस कीरमाणो, पावस्स पणासणी होइ ॥ ६ ॥ भुवणे वि मंगलाणं, मणुयासुर - अमरखयरमहियाणं । सव्वैसिमिमो पढमो, होइ महामंगलं पढमं ॥ ७ ॥ चत्तारि मंगल मे, हुतु-रहंता तहेब सिद्धा य । साहू अ सव्वकालं, धम्मो य तिलोपमंगलो ॥ ८ ॥ चत्तारि वेव ससुरासुरस्स लोगस्स उत्तमा हुंति । अरिहंत-सिद्ध-साहू- धम्मो जिणदेसियमुयारो ॥ ९ ॥ तारिवि अरहंते, सिद्धे साहू तहेव धम्मं च । संसारघोररक्खस, भएण सरणं पवज्जामि ॥ १० ॥ अह अरहओ भगवंओ, महइमहावीरवद्धमाणस्स । पणयसुरेसरसेहर - वियलियकुसुमचियकमस्स ॥ ११ ॥ जस्स वरधम्मचक्कं, दिणयरबिंबं व भासुरच्छायं । तेएण पज्जलंतं, गच्छइ पुरओ जिणिदस्स ॥ १२ ॥ आयासं पाया, सयलं महिमंडलं पयासंतं । मिच्छत्तमोहतिमिरं, हरेइ तिन्हं पि लोयाणं ॥ १३ ॥ सयलंमि विजियलोए, चिंतियमेत्तो करेइ सत्ताणं । रक्खं रक्खस-डाइणि पिसाय-गह जक्ख भूयाणं ॥ १४ ॥ लहइ विचार वाए, बवहारे भावओ सरंतो य। जूए रणे य रायं-गणे य विजयं विसुद्धप्पा ॥ १५ ॥ पञ्चसपओसेसुं, सययं भन्यो जणो सुहज्झाणो । एवं झाएमाणो, मुक्खं पर साहगो होइ ॥ १६ ॥ वेयाल-रुद्द-दाणव· नरिंद- कोहंडि-रेवईणं च । सव्वेसि सत्ताणं, पुरिसो अपराजिओ होइ ॥ १७ ॥ बिज्जुब्व पज्जती, संव्वेसु वि अक्खरेसु मत्ताओ। पंचनमोक्कारपए, इक्किके उदरिमा जाव ॥ १८ ॥ 12 अरिहाणादिस्तोत्रम् ॥ ६॥

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