Book Title: Saptopadhanvidhi
Author(s): Mangalsagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 44
________________ समोषधान ॥२०॥ उपधान वाचनापाठः अथसमेतः तृतीय वाचना साबाद उपयासोंसे। (३)घाचनापाट"एवं मए अभिधुया, विहृयरयमला पहीणजरमरणा। चउचीसं पिजिणवरा, तित्ययरा मे पसीयंतु ॥५॥ सिलिनविण-हिषा, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । आरुग्गघोहिलाभ, समाहिवरमुत्तमं दितु ॥६॥ चंदेसु निम्मलयरा, आइचेसु अहियं पयासयरा। सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु॥७॥" गाथा ३, पद १२, संपदाएँ १२, गुरु ११, लघु १०३, कुल अक्षर ११४॥ अर्थ-इस प्रकार जिनकी मैने नामपूर्वक स्तुति की है, वे चोईस जिनेश्वर, तथा दूसरे भी तीर्थङ्कर जिन्होंने कर्मरूप रजके मलसे विहिन है, और जरा तथा मरण इन दोनोंसे मुक्त है, तथा जो सामान्य केबलियोंमें श्रेष्ठ हैं वे मेरे ऊपर प्रसन्न होयें ॥५॥ जिनकी इन्द्रादिकोंने स्तुति की है, बन्दना की है, पूजा की है, जो लोकमें उत्तम सिद्ध होगये है वे मुझे आरोग्य, योपिलाभ और प्रधान उत्तम समाधि | देवें ॥ ६॥ चन्द्रसमूहसे विशेष निर्मल, सूर्यसमूहसे अधिक प्रकाश करनेवाले, स्वयम्भूरमणसमुद्र जैसे गंभीर ऐसे सिद्ध परमात्मा मुझे सिद्धि SI(मोक्ष) दे ॥७॥ छट्ठा उपधान-दष्यारिदंतस्तव (पुरस्सरवरदीषदे०), दिन, कुल तप उपवास, याचना एक प्रथम पाचना साडेतीन उपवासोंसे । Lara एक्लरवरवी पायसदम-जलवावत्यमा व्यावसाहकमा सम्मान

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