Book Title: Saptopadhanvidhi
Author(s): Mangalsagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 42
________________ सप्तोपधान० ॥ १९ ॥ पद-४३, संपदाएँ ८, गुरु २९, लघु २००, कुल अक्षर २२९ । अर्थ- समस्त लोकमें रही हुई अर्हन्त प्रतिमाके बन्दना आदिके निमित्त मैं कायोत्सर्ग करता हूँ १। वदनके निमित्त, पूजनके निमित्त, सत्कार करनेके निमित्त, सम्मान के निमित्त, बोधिलाभ के निमित्त, उपसर्गरहित (मोक्ष) स्थानके लाभके निमित्त २ | वंढती हुई श्रद्धासे, निर्मल बुद्धिपूर्वक, चित्तकी स्थिरतासे, धारणापूर्वक, अनुप्रेक्षा ( वारंवार विचारणा ) पूर्वक मैं कायोत्सर्ग करता हूँ ३। जो बारह आगार आगे कहे जायेंगे उनके सिवाय दूसरे काय व्यापारar are star हूँ । बारह आगारोंके नाम - ( १ ) ऊंचा श्वास लेनेसे, (२) नीचा श्वास छोड़नेसे, (३) खाँसी आनेसे, (४) छींक आनेसे, (५) जंभाई ( उबासी यगासी) आनेसे, (६) उद्वार - ( डकार-) आनेसे, (७) पवन - (अपानवायु) छुटनेसे, (८) चक्कर आनेसे, (९) पित्तके प्रकोपवश मूर्च्छा आजानेसे ४३ (१०) सूक्ष्म प्रकारसे शरीरका संचार होनेसे, (११) सूक्ष्म प्रकारसे थूक अथवा कफके गिलने (गिटने) से, (१२) सूक्ष्म रूपसे दृष्टिके फिरनेसे ५। इत्यादि अन्य आगारोंके सिवाय मेरा काउस्सग्ग (अभंग) अखण्डित और अविराधित होवें ६। जब तक कि अरिहंत भगवानको नमस्कार करके ( काउस्सग्ग ) न पाएँ ७ तब तक अपनी कायाको स्थान (स्थिरता ) करके, मौन रख करके, ध्यानम रह करके शरीरको ( पापक्रियासे ) कोसिराता हूँ ८ [4] 1 पचम उपधान-नामारिहंतस्तव ( लोगस्स ), दिन २८, कुल तप १५॥ वाचना तीन । प्रथम वाचना तीन उपवासोंसे । (१) वाचनापाठ - "लोगस्स उज्जोजगरे, धम्मतित्धयरे जिणे । अरिहंते कित्सइस्सं, बउवीसं पि केवली ॥ १ ॥” ● 'बड़ती हुई श्रद्धासे' यह पद सबके साथ जोडना । 38 उपधानवाचनापाठः अर्थसमेतः 11 28 11

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