Book Title: Saptopadhanvidhi
Author(s): Mangalsagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 71
________________ सप्तोपधान पचखाण पारनेकी विधि (१) मनुष्यको रखनेयोग्य उपगरण ॥ कटासण २, मुहपत्ति २, चरबला १, धोती २, उतरासंग १, सातहाथका बस्त्र, ठले माने जाते समय पहनने का १, अनिमंधारा का१, उतरपट्टा १, आलवान १, कंबल १, दोहाथका वन १, डंडासण १, (डंडासन यदि एक रहे तो भी चल सकेगा ) मात्रीया १, (२) स्त्रियोंको रखनेयोग्य उपगरण ॥ कदासण २, मुहपत्ति २, चरवला (चोरसडाडीका) २, धोती-(साडला)२, पौलका (चौलि) २, लेंगा (घाघरा)२, (ओडार) सुंधारा, उत्ता :, दुशाला १, कामल १, चार व छ हाथका वस्त्र १, डंडासन १, ( मात्रके लायक एक पात्र) पञ्चक्खाण पारने की विधि __ समासमणपूर्वक इरियावहियं० तस्स उत्तरी• अन्नस्थ कह कर एक लोगस्स का काउस्सग करे। बाद प्रकट लोगस्स कह कर 'इच्छामि० इच्छा० पचवस्त्राण पारवा मुहपत्ति पडिलेडं ? इच्छं। कह कर खमासमण देकर मुहपत्ति पडिलेहे । पीछे 'इश्छामि० इच्छा० | पञ्चक्खाण पारूं? यथाशक्ति' कहकर फिर 'इच्छामि० इच्छा पञ्जक्वाण पारेमि ? तहत्त' कह कर मुट्ठी बन्द कर एक नवकार गिने। पीछे जो पञ्चक्खाण किया हो उस पञ्चक्त्राण का नाम लेकर “पञ्चक्वाण फासियं, पालियं, सोहिय, तीरियं, किट्टिय, आराहियं जं च न आराहियं तस्स मिच्छामि दुक बोलकर एक नवकार गिने । वाद खमासमण देकर 'इच्छा० चैत्यवंदन करूं ? इच्छ' कह कर 'जयउ सामियाज | किंचि० नमोत्थु० जावंति चेइआई. जावंत के वि साहू, नमोहत् उबसग्गहर० जयवीयरायः' तक कहे उपधानवाही एकासण अथवा आयंबिल में आहार करके आसन बैठाहुआ ही "दिवसचरिम तिविद्दारका' पञ्चक्खाण करे, वहांसे उठके बादमें इरियावहि करके, पैत्यवंदन करे ।। इति ॥ 62

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