Book Title: Saptopadhanvidhi
Author(s): Mangalsagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
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पधान
उपधान चैत्यवं
ढाल॥१॥ नवकार तो तप पहिलो वीसड जाण । इरियावहीनो सप बीजो वीसड आण !! इण बिहुँ उपधाने निश्चय नांण मंडाण । बारै उपवासे गुरू मुख वे वे वाण ॥८॥ पैतीसह बीजो णमोत्थु णं उपधान । त्रिण बायण उगणीस तप उपवास प्रधान । अरिहंत चेई तप चौथो चौकड एइ । उपवास अढाई वायण एक गुण गेह ॥९॥ पांचमो लोगस्स तप अट्ठावीसह नाम । साढा पनरह उपवास वायण त्रिण ठाम ॥ पुक्खरवरदी तप छट्ठो छक्कड सार । साढा त्रण उपवासे वायण एक सुविचार ॥ १० ॥ सिद्धाणं युद्धाणं सातमो उपधान माल । उपवास करे इक चौविहार ततकाल ॥ एक वायण करै वलि गुरु मुख सरस रसाल । गच्छ नायक पासे पहिरे माल विशाल ॥ ११ ॥ माल पहरण अवसर आणी मन उछरंग | घर सारू वारू खरचे धन बहु भंग ॥ अति उच्छव कीजे राती जोगो दिल खोल । गीत गान गवावे पावै अति रंग रोल ।। १२ ॥

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