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सप्तोपधान०
नवकारवालि फेरनी । ६. एकासना आयंबिल के दिन अथवा उपवासमें पानी पीना हो तब विधिपूर्वक पा पार कर पीना । ७. एकासना या आयंबिल में भोजन करने के बाद उठते समय "तिविहार" का पचवाण लेना और उठने के बाद इरियाही करके चैत्यवंदन करना । ८. दिन में दो बार गुरुके पास में उपधान की क्रिया करें । ९. रात्रि को संथारापोरस पड़ानी विना पोरसी पडावे । ॥ इति ॥ शयन नहीं करना। १०. प्रातःकाल सूर्योदय के बाद ६ घडि का दिन व्यतीत होने के बाद उग्धाडा पोरसी पढ़ानी ।
|| आलोयणा तथा दिन पडने के कारण ||
१ एकासन (नीवी) या आयंविल कर उठने के बाद यदि वमन हो तो और उपवास में भी वमनमें यदि अन्नकण निकले तो । २ झूठा छोडने पर । ३ अशुद्ध आहार सचित कधी विगय और हरी वनस्पति का भक्षण हो तो ( खाने में आजाय तो ) । ४ पश्चक्खाण पारना भूल जाय तो । ५ भोजनानंतर चैत्यवंदन करना भूल जाय तो । ६ जिनमंदिर के दर्शन करना भूल जाय तो । ७ देव वंदन करना भूल जाय तो । ८ रात्री को शाम की विधी होने के बाद और प्रातः कालीन क्रिया के पूर्व 'स्थंडिल' जाना पड़े तो । ९ पोरसी बिना पढाये ही सो जावे । ( तदन्तर न पढावे ) और संथारापोरसी पढाना भूल जाय तो । १० मुहपत्ति भूलकर १०० कदम आगे चलने में आजाय तो । ११ मुहपत्ती गुमा दे तो ( उपलक्षण से दूसरे उपकरण का भी समझना चाहिए ) । १२ श्राविकाओं के मासिक धर्म के चौवीस ग्रहर ( याने तीन दिन अथवा जबतक अशुचि रहे तबतक ) १३ मक्खी, खटमल, जुआ आदि त्रस जीव का अपने हाथ से गलती से विराधना ( हिंसा ) हो तो । कार्य या भूलें हो जाय से वह दिन उपधान की क्रिया का नहीं गिना जायगा । तप पौषव जितने पड़ते हैं; वे पौध उपधान के साथ ही करने में आवें तो आयंबिल आदि तपसे कर सकते हैं, पर उपवास तपपूर्वक आठ प्रहर के पौषय करने पडते हैं। ] ॥ इति ॥
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[ उपर्युक्त पंक्तियों में सूचित जाते हैं उतने तप पौषध वादमें करने उपधानमें से निकलने के बाद करें तो
आलोयणादिन पड़नेके कारण