Book Title: Saptopadhanvidhi
Author(s): Mangalsagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 37
________________ सोपधान * उपधान. वाचनापाठ: अर्थसमेतः * * (१) वाचनापा:"इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरियावहिथं पांडे कमामि, इइच्छाभ पटिकमिउं । इरिया- वहियाए, विराहणाए । गमणोगमणे । पाणर्कमणे, घीयकमणे, हरियकमणे, ओसाउसिंग-पणग-दग-मटि- मामकडा संताणासंकमणे जे मे जीया विराहियो । पद्-१०, संपदाएँ ५, गुरु ८, लघु ६४, कुल अक्षर ७२, अर्थ-हे भगवन् ! आप अपनी इच्छापूर्वक आदेश (आज्ञा ) दीजिये, जिससे मार्गमें चलते समय जो पाप लगा हो उससे मैं निवृत्त होऊँ ( पीछे हटू)। गुरु आज्ञा देवे कि-"प्रतिक्रमो" (पापसे पीछे हटो), शिष्य कहे-"आपका वचन प्रमाण है, मैं पापसे निवृत्त होना चाहता हूँ १। जाने आनेके मार्गमें, तथा साधु-श्रावकके धर्ममार्गमें जो विराधना हुई हो उससे २। जैसे कि-एक स्थानसे दूसरे | स्थानमें जाते आते ३१ जीवोंको पैरोंके नीचे दबानेसे, सचित्त बीजोंको दबानेसे, नीली वनस्पतिको दबानेसे, आकाशसे गिरती ओसको, चीटियोंके नगरों (घरों) को, पांच वर्णकी लीलन-फूलनको, सचित्त मिट्टीसहित सचित्त पानीके और मकडीके जालोंको पैरों द्वारा यानेसे अथवा मदनसे । जो जीवोंकी मैंने विराधना की हो । द्वितीय वाचना साडेसात उपवासोंसे । - (२) वाचनापाठ"एगिदिया, इंदिया, तेइंदिया, बउरिदिया, पंचिंदिया ।। अभिया, वत्तिया, लेसिया, संघाइयो, ** * * * 33

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