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SAGE
सप्तोपधान
॥१७॥
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संघहिया, परियाविया, किलामिया, उदवियों, ठाणाओ ठाणं संकामियाँ, जीवियाओ ववरोवियों तस्स उपधानमिच्छामि दुकर्ड तस्स उत्तरीकरणेणं, पायछित्तर दिशाहीरजेणं, चिखल्लीकरणेणं, पावाणं कम्माणघाचनापाठः निग्घायणट्टाएँ, ठामि काउस्संग्गं ।
अर्थममेतः पद-२२, संपदाएँ ३, गुरु १६, लघु १११, कुल अक्षर १२७। __ अर्थ-वे जीव कौनसे ?-एक इन्द्रियवाले, दोइन्द्रियवाले, तीन इन्द्रियबाले, चार इन्द्रिययाले, पांच इन्द्रियवाले ६। इन जीवोंको कैसे बिराधित किया ?-सामने आते हुओंको मारे हों, धूलसे ढाँके हो, पृथ्वी पर घिसे हों, परस्पर इकट्ठे किये हों, थोडे स्पर्शसे दुःखित किये हों, उनको परिताप उपजाया गया हो, मृतप्राय (मरे हुए जैसे ) किये हों, इनको त्रास उपजाया हो, एक स्थानसे उठा कर दूसरे स्थान पर रक्खे हों, जीवितसे मुक्त ( अलग) किये हों, तो इनसे उत्पन्न मेरा पाप मिथ्या हो । उस (पाप) को इरियाबहियासे शोधते समय बाकी रही पाप रूप अशुद्धिको विशेष शुद्ध करनेके लिये प्रायश्चित्त करनेसे, आत्माका मेल टालकर विशुद्धि करनेसे, आत्माको शल्यरहित करनेसे सब पापकर्मीका नाश करनेके लिये मैं कायव्यापारके त्याग करनेरूप कायोत्सर्ग करता हूँ १८१
[३] तृतीय उपधान भावारिइंतस्तत्र ( नमुत्थु ण) दिन ३५, कुल तप १९|1 उपवास, वाचना तीन, प्रथम वाचना तीन उपवासोंसे ।।
६ ( नमुत्थु णं) दिन ३९१) वाचनापाठ
॥१७॥
सयंसंबुद्धाणं । पुरिसुर
"नमुत्थु णं अरिहंताण भगवंताण आइगराणं, तित्थर्यराण, सयंसंबुद्धाणं । पुरिमुत्तमाणं, पुरिससीहाँणं, पुरिसवरपुंडरीयाणं, पुरिसवरगंधहत्थीर्ण ॥""
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