Book Title: Saptopadhanvidhi
Author(s): Mangalsagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 17
________________ सप्तोपचान अरिहाणा | दिस्तोत्रम् को, मधिओ भावणारहिनिउत्तो । नाणमा रहे लग्गा, सिन्धमान पणासेइ । ससिधवलसलिलनिम्मल-आयारसहं च वषिणयं विदु । जोयणसयप्पमाण, जालासयसहस्सदिष्पंतं ॥१॥ सोलससु अस्वरेमुं, इक्षिक अवरं जगुबोयं । भवसयसहस्तमहणो, जमि ठिओ पंचनवकारो॥२०॥ जो थुणइ हु इक्कमणो, भविओ भावेण पंचनवकारं । सो गच्छइ सिवलोयं, उचोयतो दस दिसाओ ॥२३॥ तब-नियम-संजमरहो, पंचममोकारसारहिनिउत्तो। नाणतुरंगमजुत्तो, नेइ फुड परमनिब्वाणं ।। २२ ।। सुद्धप्पा सुद्धमणा, पंचसु समिइसु संजय तिगुत्ता। जे तम्मि रहे लग्गा, सिग्धं गच्छति सिवलोयं ॥ २६॥र धंभेड़ जलं जलणं, चिंतियमित्तो वि पंचनवकारो । अरि-मारि-चोर-राउल,-घोरुवसग्गं पणासेइ ॥ २४ ॥ अहेव य अहसया, अट्ठसहस्सं च अट्ठकोडाओ। रावतु मे सरीरं, देवासुरपणांभया सिद्धा ।।२५।। नमो अरहंताणं, तिलोयपुज्जो य संटिओ भयवं । अमरनररायमहिओ, अणाइनिहणो सिवं दिसउ ।।२०।। सब्बे पओसमच्छर-आहियहियया पणासमुवयंति । दुगुणीकयधणुसई, सोउं पि महाधणु सहसा ॥ २७ ॥ इय तिहुअणप्पमाणं, सोलसपत्तं जलंतदित्तसरं । अहार अवलयं, पंचनमोकारचक्कमिणं ।। २८॥ सयलुलोइयभुवणं, विद्याबियसेससत्तुसंघायं । नासियमिच्छत्ततमं, वियलियमोहं हय समोहं ।। २९ ॥ एयरस य मज्झत्थो, सम्महिट्ठी विसुद्धचारित्तो। नाणी पबयणभत्तो, गुरुजणसुस्सूसणापरमो॥ ३०॥ जो पंचनमोक्कार, परमो पुरिसो पराइ भत्तीए । परियत्तेइ पइदिणं, पयओ सुद्धप्पओ अप्पा ॥ ३१ ।। अद्वेव य अट्ठसयं, अट्ठसहस्सं च उभयकालं पि । अहेव य कोडीओ, सो तइयभवे लहइ सिद्धिं ॥ ३२ ॥ सप्तो.२ 13

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