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पञ्चमः खण्डः का० १९
द्रव्यस्वरूपेणाऽविशिष्टमपि । नहि शक्रेन्द्रादिशब्दभेदाद् गीर्वाणनाथस्येव रूपादिशब्दभेदाद् वस्तुभेदो
युक्तः ॥१८॥
'तदा द्रव्याद्वैतैकान्तस्थिते: ' कथंचिद् भेदाभेदवादो द्रव्य -
याह
* होज्जाहि दुगुणमहरं अनंतगुणकालयं तु जं दव्वं ।
ण उ डहरओ महल्लो वा होइ संबंधओ पुरिसो ॥१९॥
- गुणयोर्मिथ्यावादः' इति अस्य निराकरणा
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यदि नामाम्रादिद्रव्यमेव रसनसम्बन्धाद् ' रसः' इति व्यपदेशमात्रमासादयेत् द्विगुणमधुरं रसतः कुतो भवेत् ? तथा नयनसम्बन्धाद् यदि नाम 'कृष्णम्' इति भवेत् अनन्तगुणकृष्णं तत् कुतः स्यात् ? वैषम्यभेदावगतेर्नयनादिसम्बन्धमात्रादसम्भवात् । तथा, पुत्रादिसम्बन्धद्वारेण पित्रादिरेव पुरुषो भवेत् न त्वल्पो महान् वेति युक्तः । विशेषप्रतिपत्तेरुपचरितत्वे मिथ्यात्वे वा सामान्यप्रतिपत्तावपि शक्र-इन्द्र या पुरंदर ऐसे विविध शब्द प्रयुक्त होते हैं किन्तु शब्दभेद से वहाँ वस्तुभेद नहीं होता वैसे ही यहाँ भी समझना चाहिये ||१६|| १७||१८||
" इस प्रकार द्रव्याभेद एकान्तवाद सिद्ध होता है तब स्पष्ट है कि द्रव्य और गुण में कथंचिद् भेदाभेद का निरूपण मिथ्यावाद है ।"
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एकान्त अभेदवादी के इस कथन के प्रतिकार में अब अनेकान्तवादी कहते हैं। * एकान्त अभेदवादी के पक्ष में प्रसञ्जन
मूलगाथाभावार्थ :- द्रव्य दुगुना मीठा या अनन्तगुण काला ( कैसे ) होगा ? सम्बन्ध के जरिये पुरुष छोटाबड़ा नहीं हो जाता ||१९|| व्याख्यार्थ : - अभेद - एकान्तवादी यदि आम के फल की रसना के सम्पर्क से 'रस' संज्ञा करते हैं, ( अर्थात् वह स्वयं रसात्मक नहीं है), लेकिन दूसरे किसी फल के रस की रसना का सम्पर्क तो दोनों फल में समान है तो यह भेद कैसे ? की 'कृष्ण' संज्ञा करते हैं तो अनन्तगुण कृष्णता का व्यवहार किस से फलित करेंगे ? दो द्रव्य के रूप में और रस में यह जो वैषम्य यानी असमानता है, उस के भेद का बोध, यानी यह उस से इतना गुना अधिक काला अथवा मधुर है इस प्रकार का बोध सिर्फ नेत्रादि इन्द्रियों के सम्पर्क से ही हो जाता हो ऐसा तो संभव नहीं है । कारण, इन्द्रियसम्पर्क तो सिर्फ मधुर, काला इत्यादि व्यवहार का सम्पादक हो सकता है किन्तु उनमें वैषम्यभेद का तो आधान कर नहीं सकता, फिर स्वतः वैषम्यभेद के विना इन्द्रियों से उसका पता कैसे चलेगा ? यह तात्पर्य है । कदाचित् इतना मान ले कि पुत्रादि के सम्बन्ध के जरिये कोई पुरुष 'पिता' या 'पुत्र'
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१. 'कान्तः स्थिते' इति पाठान्तरम् लिं० आदर्शे । वस्तुतः अत्र 'तदा द्रव्याद्वैतैकान्तस्थिते:' अस्य स्थाने 'तदेवं द्रव्याद्वैतैकान्ते स्थिते' इति पाठः सम्यक् प्रतिभाति ।
* अनेकान्तव्यवस्थाग्रन्थे श्रीयशोविजयवाचकैरस्या गाथाया अवतरणिकेत्थमालेखिता " नन्वेवं द्रव्याद्वैतैकान्तसिद्धेः कथंचिद्भेदाभेदवादो द्रव्यगुणयोरघटमानः स्यादिति चेत् ? न, रूपादीनां गुणभेदेन व्यवहारोपपत्तावपि द्रव्याऽविशेषेऽपि तद्विशेषदर्शनेन भेदस्यापि सम्भवात्, आह च होज्जाहि० ।" इति ।
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अपेक्षा दुगुना मधुर कैसे बता सकेंगे ? तथा, यदि वे नेत्र के सम्पर्क से द्रव्य
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