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श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् कथं तत्र तत्प्रयोगानुपपत्तिः ? यदर्थविवक्षायां रक्तादिशब्दप्रयोगो लोके तस्यामेवास्माभिरपि तत्प्रतीतिमनुसृत्य भवतां विरोधप्रतिपादनाय 'सर्व' आदिशब्दप्रयोगः क्रियते इति कथमस्यानुपपत्तिः ? । __किश्च, स्थूलस्यैकत्वमभ्युपगच्छतो भवत एवायं दोषः नास्माकम् तदनभ्युपगमात् । न च पटकारणेषु तन्तुषूपचारतः पटाभिधानप्रवृत्तेः 'सर्व' आदिशब्दप्रयोगानुपपत्तिर्दोषः परस्यापि न भविष्यतीति वक्तव्यम्, एवं सर्वदैव बहुवचनप्रयोगापत्तेः । न हि भवदभ्युपगमेन बहुषु एकवचनमुपपत्तिमत् । न चावयविगतां संख्यामादाय पटादिशब्दस्तदवयवेषु तन्त्वादिष्वपरित्यक्तात्माभिधेयगतलिङ्गादिवर्तत इति वाच्यम्, अस्य व्यपदेशस्य गौणत्वे स्खलवृत्तितयाऽगौणाद् भेदप्रसक्तेः, न चासावस्ति । तथाहि - 'रक्तं सर्वं वस्त्रम्' इत्यत्र नैवं बुद्धिः 'न वस्त्रं रक्तम् किन्तु तत्कारणभूतास्तन्तवः' इति । किञ्च, भेदेनोपलब्धयोः गो-वाहिकयोर्मुख्योपचरितशब्दविषयता सम्भवति । न चावयवावयविनोः कदाचिद् भेदेनोपलब्धिरिति नात्रोपचरितशब्दप्रयोगो युक्तः । - उद्योतकर का यह कथन गलत है, क्योंकि लोगों में जो वस्त्रादि भाव प्रसिद्ध हैं उन को ही नैयायिक उद्योतकरादि ने 'अवयवी' रूप में स्वीकृत किया है, जब लोक में 'सम्पूर्ण वस्त्र रंगीन है' ऐसा 'सर्व' या 'एक' शब्द का द्विविध व्यवहार अति प्रचलित है तो फिर अवयवी के लिये 'सर्व' शब्द का प्रयोग कैसे असंगत कहा जाय ? जिस अर्थ को सूचित करने के लिये लोक 'रंगीन' शब्द का व्यवहार करते हैं उसी अर्थ के लिये प्रतीति के अनुसार हम, आप के मत में विरोध दिखाने के लिये 'सर्व' इत्यादि शब्दव्यवहार करते हैं । तब बताईये क्या असंगति है ?!
* जो स्थूल है वह एक नहीं होता * दूसरी बात यह है कि यदि स्थूल अवयवी के लिये 'सर्व' शब्द का प्रयोग असंगत है तो यह असंगतिदोष आप लोगों को (नैयायिकादि को) ही सिर पर ढोना होगा, क्योंकि स्थूल अवयवी को आप ही 'एक' मानने पर डटे हुए हैं, हम नहीं, क्योंकि हमें स्थूल 'एक' होना मंजुर नहीं है । यदि यह कहा जाय - 'वस्त्र शब्द का प्रयोग उपचार से वस्त्र के कारणभूत तन्तुओं के लिये भी होता है, वे अनेक होते हैं, अत: 'सर्व आदि शब्द का प्रयोग लोग में जो होता है उस को तन्तु-अर्थक मान लेने पर हमारे मत में भी कोई आपत्ति नहीं है - तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि तन्तुओं के लिये पट तथा 'सर्व' शब्दप्रयोग करने पर सदा के लिये बहुवचनान्त ही पट शब्द के प्रयोग की आपत्ति खडी होगी । आप का तो यह मत है कि बहुसंख्यक वस्तु के लिये एकवचनान्त प्रयोग नहीं किया जा सकता । यदि यह कहा जाय - 'पट' शब्द का जब उपचार से तन्तुओं के लिये प्रयोग होता है तब वह अपने मुख्य अर्थ पट के लिंग का जैसे परिवर्तन नहीं करता वैसे ही पटान्तर्गत एकत्व संख्या का भी परिहार नहीं करता । तात्पर्य, पट शब्द का एकवचनान्त प्रयोग जब तन्तु के लिये उपचार से किया जाता है तब पट के लिंग और संख्या का परिहार नहीं करता, सिर्फ पट रूप मुख्य अर्थ के बदले उपचार से तन्तु का प्रतिपादन करता है, अतः सर्वदा बहुवचन की विपदा निरवकाश है । – यदि आप इस (अभ्रान्त) प्रयोग को औपचारिक यानी गौण मानेंगे तो यह स्खलवृत्ति यानी अर्थासंवादी होने से भ्रान्त मानना होगा, तब जो पट के लिये ही अगौण 'पट' शब्द का प्रयोग होता है उस में और इसमें भेद प्रसक्त्त होगा । वास्तव में ‘पट' शब्द के प्रयोग में, पट के लिये अभ्रान्त और तन्तु के लिये भ्रान्त ऐसा कोई भेद आज तक उपलब्ध नहीं हुआ । देखिये - 'संपूर्ण वस्त्र रंगीन है' ऐसा प्रयोग सुन कर कभी ऐसी बुद्धि नहीं होती कि 'वस्त्र रंगीन नहीं किन्तु उनके कारणभूत तन्तु रंगीन हैं' । दूसरी बात यह है कि भिन्न भिन्न उपलब्ध होनेवाले बैल
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