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श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् वाक्यरूपताप्रसक्तिः विशेषाभिधायित्वात्, यावन्ति च वाक्ये पदानि तावन्ति वाक्यानि स्युः यावन्तश्च पदार्था वाक्यार्था अपि तावन्त एव प्रसज्येरन् । यदि च पदार्थानेकत्वेऽपि एक एव वाक्यार्थस्तदा प्रतिपादितार्थप्रतिपादकत्वात् शेषपदार्थपदानां पौनरुक्त्यमासज्येत । अन्वितार्थाभिधायकत्वे च पदस्य 'गौः' इत्युक्ते 'गच्छति' आदिक्रियाविशेषाकाङ्क्षा न स्यात् तत एव क्रियाविशेषसंसर्गस्यावगतत्वात् । न च विशेषाणामानन्त्यात् समयकरणाशक्तेरसंकेतितस्य चातिप्रसङ्गतः प्रतिपादनसामर्थ्याऽयोगात् पदानां विशेषप्रत्यायनसामर्थ्यं स्यात् । न च केवलसामान्याभिधायि पदं सम्भवति, सामान्यस्यार्थक्रियाऽनिर्वर्तकत्वेन व्यापित्वेन चानयनादिक्रियासंसर्गाभावात् । ततश्च सामान्यविशेषयोरन्यतरस्यापि पदेनाऽनभिधानात् कथमन्विताभिधानम् ? सामान्यस्य नित्यत्वादेकत्वाच्च पदेन सह संकेतसद्भावात् पदार्थत्वेऽपि वाक्यार्थस्य तत्सम्बद्धत्वेनाऽग्रहणात् कुतस्तत्प्रतिपत्तिरित्युक्तं प्राक् ! ____यदि च पदात् पदार्थे उत्पन्नं ज्ञानं वाक्यार्थपर्यवसायि अभ्युपगम्येत चक्षुरादिप्रभवरूपादिज्ञानं
* अन्विताभिधानवादि एकान्तमत का निरसन * एकान्त से, क्रिया-कारकादि अन्वित पदार्थों का पदप्रयुक्त अभिधान भी युक्तियुक्त नहीं है। यदि अन्यपदार्थ से संसक्त ही पदार्थ पद से व्याख्यात किया जाता हो तब तो प्रथम पद से ही अन्यपदार्थान्वित स्वपदार्थस्वरूप वाक्यार्थ का निरूपण हो जाने से शेष पदों का उच्चारण निरर्थक ठहरेगा। एवं पद में वाक्यात्मकता की प्रसक्ति होगी, क्योंकि उस से विशिष्ट अर्थका अभिधान होता है। तथा, जितने पद उतने वाक्य, इसी तरह जितने पदार्थ उतने वाक्यार्थ होने की भी अन्विताभिधान पक्ष में विपदा आयेगी। यदि कहा जाय कि ‘पदार्थ की बहुलता होने पर भी वाक्यार्थ तो एक ही होता है - जो कि अन्यपदार्थान्वित पदार्थरूप है' तब तो एक पदार्थ के द्वारा जिस वाक्यार्थ का प्रतिपादन हुआ, उसी का प्रतिपादन करने से शेषपदार्थप्रकाशक पदों के भाषण में पुनरुक्तिदोष प्रशक्त होगा। तथा अन्विताभिधान पक्ष में ‘गौः' एक पद के श्रवण से, गमन क्रिया से अन्वित गाय का बोध हो जाने से ‘गच्छति' आदि क्रिया पदों के अध्याहार आदि की आकांक्षा नही रहेगी, क्योंकि ‘गौः' पद से ही क्रियाविशेष का संसर्ग ज्ञात हो चुका है।
तथा, पदों में विशेषार्थ अवबोधक सामर्थ्य हो नहीं सकता, क्योंकि विशेष अनन्त होने से यह शक्य नहीं है कि प्रत्येक विशेष में पृथक्-पृथक् संकेत किया जा सके। जिस का संकेत नहीं है उस अर्थ का प्रतिपादन पद से शक्य होगा तो शशसींग आदि के प्रतिपादन की प्रसक्ति हो सकती है, अतः विशेषों का प्रतिपादन शक्य नहीं होने से, पदों में विशेषार्थप्रतीति का सामर्थ्य हो नहीं सकता। पद से केवल सामान्य का प्रतिपादन भी असम्भव है, क्योंकि सामान्य किसी भी अर्थक्रिया के सम्पादन में सक्षम नहीं है और व्यापक भी है इसलिये उस के आनयनादि क्रिया का संसर्ग किसी भी पदार्थ में हो नहीं सकता। जब इस प्रकार सामान्य या विशेष – एक का भी प्रतिपादन किसी भी पद से शक्य नहीं है तब अन्विताभिधान की तो बात ही कहाँ ? पहले कहा है कि सामान्य एक और नित्य होने से यद्यपि उस में पद का संकेत हो सकता है, अतः सामान्य का पदार्थ के रूप में ग्रहण हो सकता है, किन्तु वाक्यार्थ का पदार्थ के सम्बन्धिरूप में ग्रहण शक्य न होने से वाक्यार्थ की प्रतीति किस से होगी यह प्रश्न ज्यों का त्यों ही खड़ा रहता है।
__* पदजन्य पदार्थज्ञान वाक्यार्थपर्यवसायि मानने में अतिप्रसंग * पद का व्यापार परम्परया वाक्यार्थज्ञान तक खिंच कर अगर यह कहा जाय कि पद से पदार्थज्ञान उत्पन्न
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