Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 05
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 382
________________ पञ्चमः खण्डः - का० ६५ ३५७ निमित्तं 4किमेकदेशनैर्ग्रन्थ्यम् आहोस्वित् सर्वथा नैर्ग्रन्थ्यमिति ? यदि Bसर्वथा नैर्ग्रन्थ्यं रागाद्यपचयनिमित्तम् तत्र तथाभूतनैर्ग्रन्थ्यस्य मुक्तव्यतिरेकेणाऽसंभवात्, मिथ्यात्वाऽविरति-प्रमाद-कषाययोगबलप्रवृत्ताष्टविधकर्मसम्बन्धस्य ग्रन्थत्वात् तदभावस्य चात्यन्तिकस्य निःशेषतो मुक्तेषु एव सम्भवात्, ततश्च कथं तस्य रागाद्यपचयहेतुतेति कथं न विशेषणाऽसिद्धो हेतुः ? अथ देशनैर्ग्रन्थ्यं रागाद्यपचयनिमित्ततयाऽत्र विवक्षितं तदाऽत्रापि वक्तव्यम् – 'किं तत् सम्यग्ज्ञानादितारतम्येनोपचीयमानम् आहोस्विद् बाह्यवस्त्राद्यभावरूपम् ? 'तत्र यदि आद्यः पक्षः स न युक्तः, तथाभूतस्य सम्यग्ज्ञानादिविपक्षत्वेन वस्त्रादिग्रहणस्याऽसिद्धेः हेतोर्विशेष्याऽसिद्धताप्रसक्तेः। नापि द्वितीयः, वस्त्राद्यभावस्य रागाद्यपचयनिमित्तत्वासिद्धेः हेतोर्विशेषणासिद्धतादोषात् । न च वस्त्राद्यभावो रागाद्यपचयहेतुत्वेन सिद्ध इति वक्तव्यम् अतिशयरागवद्भिः पारापतादिभियभिचारात् । न च पुरुषत्वे सति वस्त्राभावो रागाद्यपचयहेतुः, वस्त्रविकलनाहलैर्व्यभिचारात् । न चार्यदेशोत्पत्तिमत्पुरुषत्वे सति असौ तद्धेतुरिति वक्तव्यम् तथाभूतकामुकपुरुषैर्व्यभिचारात् । न च व्रतधारितथाभूतपुरुषत्वे सत्यसौ तनिमित्तम्, तथाभूतपाशुपतैर्व्यभिचारात् । न च जैनशासनप्रतिनिर्ग्रन्थता ? ये दो विकल्प हैं। प्रथम विकल्प में, यदि सम्पूर्ण निर्ग्रन्थता रागादिअपचय के निमित्तरूप में विवक्षित हो तो हेतु में विशेषणासिद्धि का दोष प्रसक्त होगा, क्योंकि सम्पूर्ण निर्ग्रन्थता यानी मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, प्रमाद और योगबल से अर्जित आठों प्रकार के कर्मों के सम्बन्धरूप ग्रन्थ का सर्वथा अभाव; ऐसा अत्यन्त ग्रन्थाभाव तो मुक्तात्मा के अलावा और किसी संसारी जीव में सम्भव ही नहीं है, मुक्तात्मा की निर्ग्रन्थता तो रागादिअपचय का फल है न कि निमित्त, तब हेतु में निर्ग्रन्थता (यानी सम्पूर्ण मुक्तात्मा की निर्ग्रन्थता) को जो ‘रागादिअपचयनिमित्त' ऐसा विशेषण लगाया है वह कैसे घटेगा ? दूसरे विकल्प में यदि देश (=आंशिक) निर्ग्रन्थता को लिया जाय तो वह रागादिअपचय का निमित्त जरुर है, किन्तु यहाँ दो प्रश्नों का उत्तर देना होगा। वह देशनिर्ग्रन्थता सम्यग्ज्ञान आदि की तरतमता से उपचित होने वाली विवक्षित है या बाह्यवस्त्रादि के अभावस्वरूप लेना है ? पहले पक्ष में, जो सम्यग् ज्ञानादि का विपक्ष होगा वह सम्यग्ज्ञानादि की तरतमता से तरतमभाव में उपचित होनेवाले नैर्ग्रन्थ्य का भी विपक्ष होगा, किन्तु वस्त्रादिग्रहण सम्यग्ज्ञानादि के विपक्षरूप में सिद्ध न होने से निर्ग्रन्थता विपक्षरूपत्व भी वस्त्रादिग्रहणरूप पक्ष में असिद्ध है। अतः पक्ष में हेतु विशेष्यअंश में असिद्धिदोषग्रस्त हो जायेगा। यदि दूसरे पक्ष में देशनिर्ग्रन्थता वस्त्रादि के अभावरूप ही विवक्षित हो तो यहाँ हेतु में विशेषणांश असिद्ध होने का दोष होगा। कारण, हेतु के अंशभूत निर्ग्रन्थता यानी वस्त्रादि-अभाव में रागादि के अपचय की निमित्तता ही असिद्ध है। * वस्त्रादि का अभाव रागादिअपचयहेतु नहीं है * ऐसा नहीं कह सकते कि वस्त्रादि का अभाव रागादि के अपचय का हेतु है – क्योंकि अतिशय कामी कबूतर आदि निर्वस्त्र हैं किन्तु उन में रागादि का अपचय नहीं होता। 'पुरुष यदि वस्त्र न रखे तो रागादि का अपचय होता है' ऐसा भी नहीं कह सकते, क्योंकि निर्वस्त्र होने पर भी अनार्य पुरुषों को रागादि का अपचय नहीं होता। यदि कहा जाय कि आर्य-पुरुष में वस्त्रादि का अभाव रागादि के अपचय का हेतु होता है तो यह भी ठीक नहीं है क्योंकि कामातुर आर्यदेशोत्पन्न पुरुष में नग्न होने पर भी रागादि का अपचय नहीं होता। यदि व्रतधारी आर्यपुरुष की नग्नता को रागादिअपचय में हेतु कहा जाय तो यह भी अनुचित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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