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पञ्चमः खण्डः - का० ५६
हि तयोस्तथाभूतयोस्तत्राऽप्रवृत्तिः, सा च त्रैरूप्याभ्युपगमे विरोधादयुक्ता भावाभावयोः परस्परपरिहारस्थितलक्षणतयैकत्राऽयोगात् । अथ द्वयोरन्योन्यव्यवच्छेदरूपयोरेकत्राऽयोगादनित्यधर्मानुपलब्धेर्नित्यधर्मानुपलब्धेर्वा बाधा । न, अनुमानस्यानुमानान्तरेण बाधाऽयोगात् ।
तथाहि – तुल्यबलयोर्वा तयोर्बाध्यबाधकभावं अतुल्यबलयोर्वा ? न तावदाद्यः पक्षः, द्वयोस्तुल्यत्वे एकस्य बाधकत्वमपरस्य बाध्यत्वमिति विशेषानुपपत्तेः । न च पक्षधर्मत्वाद्यभावादिरेकस्य विशेषः, तस्यानभ्युपगमादभ्युपगमे वा तत एवैकस्य दुष्टत्वान्न किञ्चिदनुमानबाधया । तन्न पूर्वः पक्षः । नापि द्वितीयः, यतोऽतुल्यबलत्वं तयोः पक्षधर्मत्वादिभावाभावकृतम्, अनुमानबाधाजनितं वा ? न तावत् आद्यः पक्षः, तस्यानभ्युपगमादभ्युपगमे वाऽनुमानबाधवैयर्थ्यप्रसक्तेः । नापि द्वितीयः तस्याद्यापि विचारास्पदत्वात् । न हि द्वयोस्त्रैरूप्यात्तुल्यत्वे एकस्य बाध्यत्वमपरस्य च बाधकत्वम् इति व्यवस्थापयितुं शक्यम् । तन्नानुमानबाधाकृतमपि अतुल्यबलत्वमितरेतराश्रयदोषापत्तेः परिस्फुटत्वात् ।
एतेन पक्ष-सपक्षान्यतरत्वादेरपि प्रकरणसमस्य व्युदासः कृतो द्रष्टव्यः, न्यायस्य समानत्वात् । यदि यह कहा जाय कि 'दो परस्परव्यवच्छेदात्मक धर्मों का एक धर्मी में अवकाश नहीं होता । अनित्यधर्मानुपलब्धि और नित्यधर्मानुपलब्धि परस्पर विपरीत हैं अतः एक धर्मी में एक के होने पर दूसरे का प्रतिबन्ध क्यों नहीं होगा ?" यह प्रश्न संगत नहीं है, क्योंकि वे दोनों परस्परव्यवच्छेदस्वरूप होने पर भी जब उन दोनों का एक धर्मी में प्रयोग किया जाय तब दोनों स्वतन्त्र अनुमान होने से, एक अनुमान दूसरे अनुमान का कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा सकता ।
* एक अनुमान दूसरे अनुमान का बाधक क्यों नहीं ? * एक अनुमान यदि दूसरे अनुमान का बाधक होगा तो दो विकल्पप्रश्न खड़े होंगे अनुमानों में बाध्यबाधक भाव होगा या असमानबलवाले में ?
पहले पक्ष में बाध्य - बाधक भाव सम्भव ही नहीं है, क्योंकि दोनों ही समानबल वाले हैं, उन में एक में दूसरे से कोई अधिक विशेषता है नहीं । यह तो आप नहीं कह सकते कि एक पक्षवृत्तिता का विरह आदि विशेषता है, दूसरे में नहीं है। कारण, आप तो प्रयोगकाल में दोनों हेतुओं को पक्षवृत्ति मान कर चलते हैं । यदि आप किसी एक को पक्षवृत्तित्वादि से शून्य मान लेंगे तो उसी से वहाँ असिद्धादि दोष प्रगट हो जायेगा, फिर दूसरे अनुमान से बाधा की उपस्थिति को अवकाश ही कैसे रहेगा ? निष्कर्ष, पहला विकल्प अयुक्त है ।
द्वितीय विकल्प भी अप्रस्तुत है, क्योंकि यही तो अब तक विचाराधीन है कि दो में से कौन सा हेतु हीनबलवाला और कौन सा अधिकबलवाला है ? अब तक तो असमानबलता सिद्ध नहीं है । इस स्थिति में, जब कि तीनरूपों का समावेश दोनों हेतुओं में समान है तब एक बाध्य और दूसरा बाधक ऐसी व्यवस्था कैसे हो सकती है ? यहाँ अनुमानबाध के बल पर भी असमानबलत्व नहीं कहा जा सकता, क्योंकि असमानबल के आधार पर अनुमानबाध और अनुमानबाध के जरिये असमानबलत्व सिद्ध करने पर अन्योन्याश्रय दोष स्पष्ट है। * पक्ष-सपक्षान्यतरत्व भी प्रकरणसम नहीं है
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उक्त अनुपलब्धि हेतु में प्रकरणसमत्व दोष का जैसे निराकरण किया गया, वैसे पक्ष - सपक्षान्यतरत्व (पक्ष या विपक्ष में से कोई एक होना) आदि हेतुओं में भी प्रकरणसमत्व का निरसन जान लेना चाहिये, क्योंकि जिस युक्ति से पहले प्रकरणसमत्व का निरसन किया है वह युक्ति वहाँ भी समानरूप से संलग्न है । कैसे
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समान बलवाले दो
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