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पञ्चमः खण्डः - का० ३९ रम्भकत्वे आरम्भवैयर्थ्यप्रसक्तिः इति द्वाभ्यां परमाणुभ्यां व्यणुकमारभ्यते । त्र्यणुकमपि न द्वाभ्यामणुभ्यामारभ्यते, कारणविशेषपरिमाणतोऽनुपभोग्यत्वप्रसक्तेः । यतो महत्त्वपरिमाणयुक्तं तद् उपलब्धियोग्यं स्यात्तथा चोपभोग्यं कारणबहुत्वमहत्त्वप्रचयजन्यं च महत्त्वम् । न च द्वि-त्रिपरमाण्वारब्धे कार्ये महत्त्वम् , तत्र महत्परिमाणाभावात् तेषामणुपरिमाणत्वात्, प्रचयोऽप्यवयवाभावान सम्भवति तेषाम् । नापि द्वाभ्यामणुभ्याम्, कारणबहुत्वाभावात्, न प्रचयोऽपि प्रशिथिलावयवसंयोगाभावात् । उपलभ्यते च समानपरिमाणैस्त्रिभिः पिण्डैरारब्धे कार्ये महत्त्वम् न द्वाभ्यामिति महत्परिमाणाभ्यां ताभ्यामेवारब्धे महत्त्वम् न त्रिभिरल्पपरिमाणैरारब्धे इति समानसंख्या-तुलापरिमाणाभ्यां तन्तुपिण्डाभ्यामारब्धे पटादिकार्ये प्रशिथिलावयवतन्तुसंयोगकृतं महत्त्वमुपलभ्यते न तद् इतरत्रेति । देता है । यदि यहाँ दो परमाणु के परिमाण से सजातीय उत्कर्षशाली परिमाण का जन्म मानेंगे तो वहाँ व्यणुक में अणुतर परिमाण उत्पन्न होने की आपत्ति हो सकती है, इसलिये वहाँ अणुपरिमाण को जनक नहीं माना जाता । अतः दो परमाणुओं से उत्पन्न व्यणुक में सिर्फ द्वित्वसंख्याजन्य अणुपरिमाण ही माना गया है, इसलिये व्यणुक को भी ‘अणु' ही कहा जाता है । तीन या चार व्यणुक के मिलने से उत्पन्न होनेवाले द्रव्य को 'त्र्यणुक' कहा जाता है । यदि इसे भी 'अणु' ही माना जायेगा तो उसमें महत्त्व परिमाण का अस्तित्व लुप्त हो जायेगा, जो कि द्रव्य के प्रत्यक्षोपलम्भ का निमित्तकारण है । फलत: त्र्यणुक अदृश्य बन जायेगा ।
* व्यणुक-त्र्यणुकनिष्पत्ति की प्रक्रिया * __ आरम्भवाद में दो परमाणु से बने व्यणुक से ही जन्य द्रव्य का प्रारम्भ माना जाता है । उस का कारण यह है कि तीन या चार प्रत्येक (यानी छूटे) परमाणुओं के मिलन से कोई भी द्रव्य उत्पन्न होगा तो उसका परिमाण तो अणुपरिमाण ही उत्पन्न होगा । फलतः, तीन या चार पृथक् पृथक् परमाणुओं को द्रव्यारम्भक मानने पर किसी प्रयोजन (महत् परिमाणोत्पत्ति आदि)की सिद्धि न होने से वहाँ निरर्थक आरम्भ होगा । यदि त्र्यणुक की उत्पत्ति तीन व्यणुक के बदले दो अणुओं से होगी तो उस में भी विशेषकारणभूत अणुओं का समान परिमाण यानी अणु परिमाण ही उत्पन्न होने से वह उपभोगयोग्य नहीं बनेगा । जो महत्त्व-परिमाण से आश्लिष्ट होता है वही उपलब्धियोग्य हो सकता है और वही उपभोगयोग्य होता है । महत्त्व यथासम्भव तीन हेतु से उत्पन्न होता है, १-तीन या तीन से अधिक समवायिकारण से, २- महत्त्व से और ३ - प्रचय (यानी शिथिलअवयव संयोग) से । दो परमाणु से जन्य द्रव्य में न तो कारणबहुत्व है, न महत्त्व, अतः व्यणुक में महत्परिमाण उत्पन्न नहीं हो सकता । तीन पथक पथक परमाण में महत्त्व नहीं होने से उन से उत्पन्न होनेवाले द्रव्य में महत्त्व उत्पन्न नहीं होता, यदि यहाँ कारणगत बहुत्व संख्या से परिमाण की उत्पत्ति मानेंगे तो अणुपरिमाण सजातीय होने से उत्पन्न होगा लेकिन महत् परिमाण उत्पन्न नहीं होगा । तीन पृथक् पृथक् परमाणु सावयव न होने से वहाँ शिथिल अवयवसंयोगस्वरूप प्रचय से भी महत्त्वपरिमाण उत्पन्न नहीं हो सकता । दो अणु से उत्पन्न होने वाले द्रव्य में भी महत्त्व उत्पन्न नहीं हो सकता क्योंकि वहाँ कारण-बहुत्व नहीं है और निरवयव होने से शिथिल अवयवसंयोगात्मक प्रचय भी वहाँ नहीं है । दो समान(अणु)परिमाणवाले अवयवों से आरब्ध द्रव्य में महत्त्व उपलब्ध नहीं होता, इसका मतलब यह नहीं है कि महत्त्व सर्वथा अनुपलब्ध है; तीन समान(अणु) परिमाणवाले अवयवों से (जो स्वयं परमाणुरूप नहीं किन्तु व्यणुकात्मक है उन से) कारणबहुत्वसंख्या-जन्य महत् परिमाण उपलब्ध होता है । तथा महत्परिमाणवाले दो सावयव द्रव्य से उत्पन्न द्रव्य में भी महत्त्व उपलब्ध होता है । किन्तु तीन अणुपरिमाण निरवयव द्रव्य से उत्पन्न द्रव्य में महत्त्व उपलब्ध नहीं होता । तथा दो तन्तुपिण्ड
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