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श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् विभागजातं नेच्छन्ति ॥३८॥
कुतः पुनर्विभागजोत्पादानभ्युपगमवादिन उत्पादार्थानभिज्ञाः ? यतः, ____ अणु दुअणुएहिं दव्वे आरद्धे 'तिअणुयं' ति ववएसो ।
तत्तो य पुण विभत्तो अणु त्ति जाओ अणू होइ ॥३९॥ द्वाभ्यां परमाणुभ्यां कार्यद्रव्ये आरब्धे 'अणुः' इति व्यपदेशः परमाणुद्वयारब्धस्य व्यणुकस्याणुपरिमाणत्वात् । त्रिभि_णुकैश्चतुर्भिर्वाऽऽरब्धे ‘त्र्यणुकम्' इति व्यपदेशः, अन्यथोत्पत्तावुपलब्धिनिमित्तस्य महत्त्वस्याभावप्रसक्तेः ।
अत्र किल त्रिभिश्चतुर्भिर्वा प्रत्येकं परमाणुभिरारब्धमणुपरिमाणमेव कार्यम् इति त्र्यादिपरमाणूनामाकी दुर्घटना होगी ॥३७॥
* विभागजन्य द्रव्योत्पाद का अस्वीकार * ___ वादिशंका - आपने ३४ वीं गाथा में जो दो प्रकार का विनाश दिखाया है उस में से एक अर्थान्तरगमन को विनाश के रूप में प्रस्तुत करना असम्भव है, तथा विभागजन्य उत्पाद जैसी कोई चीज दुनिया में है नहीं। विनाश और उत्पाद के विरह में स्थिति भी संभवबाह्य हो जाती है । फलतः उन सभी की त्रैकालिकता का सपना भी देखना व्यर्थ है । ___ उत्तर – ऐसा मानने वाले वादी के समक्ष ग्रन्थकार विभागजन्य उत्पाद को मान्य रखते हुए प्रतिपादन करते हैं -
मूलगाथार्थ :- कुछ उत्पादपदार्थ के निरूपण में अकुशल वादी एक द्रव्य का अन्यद्रव्य के साथ संयोग होने पर नये द्रव्य की उत्पत्ति को मान्य करते हैं, किन्तु विभागजन्य उत्पाद को मान्य नहीं करते ॥३८।। ___व्याख्यार्थ :- कुछ वादी कहते हैं, दो या दो से अधिक समानजातीय अवयवद्रव्य से अवयविद्रव्यात्मक कार्य उत्पन्न होता है और वह कारणद्रव्य से भिन्न होता है; यहाँ अवयवद्रव्य समवायिकारण होता है, अवयवों का संयोग असमवायिकारण होता है, उन दोनों से भिन्न शेष कारणों को निमित्त कारण कहा जाता है, असमवायि और निमित्त कारण के सहयोग वाले समवायिकारण से कार्य द्रव्य का जन्म होता है । इस प्रकार अवयवात्मक कारणद्रव्य के संयोग से ही कार्य द्रव्य का जन्म माननेवाले ये वादी वास्तव में उत्पादतत्त्व के अनभिज्ञ हैं इसीलिये विभागजन्य उत्पाद को नहीं मानते ॥३८॥
प्रश्न :- विभागजन्य उत्पाद को न मानने वाले उत्पादतत्त्व के वास्तव ज्ञाता नहीं है ऐसा क्यों ? उत्तर :- इसलिये कि -
मूलगाथार्थ :- एक और एक ऐसे दो अणुओं से जनित द्रव्य को 'अणु(परिमाण)' ही कहा जाता है, बहु (-३) व्यणुकों से जनित द्रव्य को त्र्यणुक कहा जाता है तो वैसे ही उन में से पृथक् हो जाने वाले अणुपरिमाण द्रव्य को 'अणु' ऐसा कहा जा सकता है ॥३९।। ___ व्याख्यार्थ :- दो परमाणु मिल कर जिस कार्य को उत्पन्न करते हैं वह व्यणुक होने परभी उस को 'अणु' द्रव्य कहा जाता है । कारण यह नियम है कि परिमाण अपने सजातीय सोत्कर्ष परिमाण को जन्म - बहुषु त्वनियमः - कदाचित् त्रिभिरारभ्यते इति त्र्यणुकमित्युच्यते कदाचिचतुर्भिरारभ्यते कदाचित् पञ्चभिरिति यथेष्टं कल्पना । प्रशस्त० कंदली ।
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