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श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् र्थिकपर्यायार्थिकनयद्वयावलम्बिनः कथं मिथ्यात्वम् ? इत्यत्राह -
दोहि वि णएहि णीअं सत्थमुलूएण तह वि मिच्छत्तं ।
जं सविसअप्पहाणत्तणेण अण्णोण्णनिरवेक्खा ॥४९॥ द्वाभ्यामपि द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनयाभ्यां प्रणीतं शास्त्रम् उलूकेन वैशेषिकशास्त्रप्रणेत्रा, द्रव्यगुणादेः पदार्थषट्कस्य नित्यानित्यैकान्तरूपस्य तत्र प्रतिपादनात् ।
* वैशेषिकमतानुसारिणी पदार्थ-व्यवस्था * ___ तथाहि द्रव्य-गुण-कर्म-सामान्य-विशेष-समवायाख्याः षडेव पदार्थाः, न्यूनाधिकप्रतिपादकप्रमाणाभावे परस्परविविक्तस्वरूपषट्पदार्थव्यवस्थापकप्रमाणविषयत्वात्, उभयाभिमतघटादिषट्पदार्थवत् । तत्र पृथीव्यप्-तेजो-वाय्वाकाश-काल-दिगात्म-मनांसि नवैव द्रव्याणि । 'पृथिवी आपः तेजो वायुः' इत्येतत् चतुःसंख्यं नित्याऽनित्यभेदाद् द्विप्रकारं द्रव्यम् । तत्र परमाणुरूपं नित्यम् “सदकारणवनित्यम्" (वैशे० द० ४१-१) इति वचनात् । तदारब्धं तु व्यणुकादि कार्यद्रव्यमनित्यम् । आकाशादिकं तु नित्यमेव, अनुत्पत्तिमत्त्वात् । एषां च द्रव्यत्वाभिसम्बन्धाद् द्रव्यरूपता, द्रव्यत्वाभिसम्बन्धश्च द्रव्यत्वसामान्योप
* कणादमत को मिथ्या कहने का प्रयोजन * प्रश्न :- अन्योन्य सर्वथा निरपेक्ष एक-एक नय को पकड कर बैठ जाने वाले सांख्यमत और बौद्धमत को मिथ्या कहा गया, उस में कोई आपत्ति नहीं है । किन्तु आप तो द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक दोनों नय का आश्रय लेने वाले कणादऋषि के मत को भी मिथ्या कहते हैं - ऐसा क्यों ? इस प्रश्न के उत्तर में, ४९ वी गाथा से कहते हैं -
मूलगाथार्थ :- उलूक (=कणाद) ऋषि ने दोनों नय के आधार पर अपना शास्त्र बनाया, फिर भी उस में मिथ्यात्व है, क्योंकि अपने अपने विषय को ही प्रधानता देने वाला होने के कारण उन दोनों का परस्पर निरपेक्ष भाव है ॥४९॥ ___ व्याख्यार्थ :- वैशिषिकशास्त्र के प्रणेता उलूकऋषि ने जो 'वैशेषिकसूत्र' के नाम से प्रसिद्ध शास्त्र बनाया है उन्होंने द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दोनों नयों का अवलम्ब ले कर द्रव्य-गुण-कर्म-सामान्य-विशेष-समवाय इन छ: पदार्थों का निरूपण किया है, किन्तु उसमें भी कुछ सामान्यादि पदार्थों को सर्वथा नित्य ही बताया, जब कि अन्य कर्मादि पदार्थों को एकान्त रूप से अनित्य ही बताया है।
* वैशेषिकमतानुसारी पदार्थव्यवस्था * वैशेषिक दर्शन में छः ही मूल पदार्थ दिखाये गये हैं - १द्रव्य २गुण ३कर्म ४सामान्य ५विशेष ६समवाय। छ से कम या अधिक पदार्थ सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण नहीं है, जब कि एक-दूसरे से स्वतन्त्र द्रव्यादि छ पदार्थ को सिद्ध करनेवाला प्रमाण मौजूद है । उस प्रमाण के छ ही स्वतन्त्र विषय हैं इसलिये पदार्थ छ: ही हैं । जैसे किसी दो पक्षों की, प्रमाणसिद्ध घटादि छ पदार्थों में पूर्ण सम्मति होती है वैसा ही यहाँ है। ____ नव द्रव्य हैं -- 'पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, "दिशा, “आत्मा और 'मन । पहले चार, पृथ्वी-जल-तेज और वायु - द्रव्यों में नित्य और अनित्य ऐसे दो विभाग हैं । (१) जो सूक्ष्मतम अंश है उसे परमाणु कहा जाता है वह नित्य होता है । यह वैशेषिकसूत्र का वचन है 'जो कारणजन्य न होने पर
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