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पञ्चमः खण्डः - का० ३८ उत्पद्यत उत्पत्स्यते च । यद् यदैव उत्पत्स्यते तत् तदैवोत्पद्यत उत्पन्नं च । तथा – तदेव तदैव यदुत्पद्यते तद् तदैव विगतं विगच्छद् विगमिष्यच्च । तथा, यदेव यदैवोत्पन्नं तदेव तदैव विगतं विगच्छद् विगमिष्यच्च । तथा यदेव यदैवोत्पत्स्यते तदेव तदैव विगतं विगच्छद् विगमिष्यच्च । एवं विगमोऽपि त्रिकाल उत्पादादिना दर्शनीयः, तथा स्थित्यापि त्रिकाल एव सप्रपञ्चः प्रदर्शनीयः । एवं स्थितिरपि उत्पाद-विनाशाभ्यां सप्रपश्चाभ्यामेकैकाभ्यां त्रिकाला प्रदर्शनीयेति द्रव्यमन्योन्यात्मकतथाभूतकालत्रयात्मकोत्पाद-विनाश-स्थित्यात्मकं प्रज्ञापयंस्त्रिकालविषयं द्रव्यस्वरूपं प्रतिपादितं भवति, अन्यथा द्रव्यस्याभावात् तद्वचनस्य मिथ्यात्वप्रसक्तिरिति भावः ॥३७॥ ____ नन्वर्थान्तरगमनलक्षणस्य विनाशस्याऽसम्भवात् विभागजस्य चोत्पादस्य; तवयाभावे स्थितेरप्यभावात् तत् त्रैकाल्यं दूरोत्सारितमेवेति मन्यमानान् वादिनः प्रति तदभ्युपगमप्रदर्शनपूर्वकमाह
दव्वंतरसंजोगाहि केचि दवियस्स बेंति उप्पायं ।
उप्पायत्थाऽकुसला विभागजायं ण इच्छन्ति ॥३८॥ समानजातीयद्रव्यान्तरादेव समवायिकारणात् तत्संयोगाऽसमवायिकारण-निमित्तकारणादिसव्यपेक्षाद् अवयवि कार्यद्रव्यं भिन्नं कारणद्रव्येभ्यः उत्पद्यत इति द्रव्यस्योत्पादं केचन ब्रुवते । ते चोत्पादार्थानभिज्ञा में है तब उत्पन्न और उत्पत्स्यमान भी है; तथा जो उत्पत्स्यमान है वही उत्पद्यमान और उत्पन्नावस्था में भी है । जैसे एक एक उत्पन्नादि तीनों काल को लेकर यहाँ द्रव्य की त्रैकालिकता दर्शायी गयी है वैसे ही विनश्यमानादि तीनों काल को ले कर भी उत्पादादि में एक एक कर के त्रैकालिकता का उपदर्शन किया जा सकता है ।
वह उपदर्शन इस तरह है - जो जब उत्पन्न हो रहा है वह उस समय उत्पन्न भी है और उत्पन्न होने वाला भी । जो जब उत्पन्न हुआ है उसी समय वह उत्पन्न हो रहा है और उत्पन्न होनेवाला भी । जो जब उत्पन्न होनेवाला है वह उसी समय उत्पन्न है और उत्पन्न हो रहा है भी । ठीक इस तरह उत्पद्यमान, उत्पन्न और उत्पत्स्यमान के साथ विगम को जोड दीजिये - जो जब उत्पन्न हो रहा है वह उसी समय नष्ट है,
। रहा है और नष्ट होनेवाला भी । तथा, जो जब उत्पन्न है वह भी उसी समय नष्ट है, नष्ट हो रहा है और नष्ट होने वाला भी । तथा, जो जिस समय उत्पन्न होनेवाला है वह उसी समय नष्ट है, नष्ट हो रहा है एवं नष्ट होनेवाला भी है ।
इसी प्रकार यह भी समझ ही लेना है कि - जो जब नष्ट हो रहा है वह उसी समय उत्पन्न है, उत्पन्न हो रहा है और उत्पन्न होने वाला भी है... इत्यादि, विगम की भी उत्पादादि के साथ त्रैकालिकता प्रदर्शित की जा सकती है । तथा स्थिति के साथ भी उसी ढंग से उत्पाद-विनाश के विस्तार से त्रैकालिकता प्रदर्शित की जा सकती है । तथा, उसी ढंग से स्थिति की भी उत्पाद-विनाश प्रत्येक के साथ त्रैकालिकता का प्रदर्शन विस्तार से किया जा सकता है ।
उक्त रीति अनुसार जो परस्पराभिन्न एक-दूसरे से अनुविद्ध त्रिकालव्याप्त उत्पाद-विनाश-स्थिति हैं वे सब एकद्रव्य-संसर्गी होने से द्रव्य भी उक्त प्रकार के उत्पादादि से अनन्य है - इस ढंग का प्रतिपादन करने वाला पुरुष द्रव्य को सही ढंग से त्रिकालविषय के रूप में विशेषरूप से प्रस्तुत करता है ॥ तात्पर्य, उपरोक्त ढंग से द्रव्य का स्वरूप त्रिकालव्यापक है यह प्रतिपादित होता है, यदि द्रव्य को त्रैकालिक न माने तो वास्तव में स्वरूपशून्य हो जाने से द्रव्य का अस्तित्व ही शून्य हो जाने से द्रव्यप्रतिपादक वचनप्रयोग मिथ्या हो जाने
नष्ट हो
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