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(१६) • मति भासी योगसों भयो उदासी, ममता मिटाय परजाय
बुद्धि नाखी है ॥ निरभै सुझाव लीनो अनुभौके रस भीनो, 'कीनो व्यवहार दृष्टिनिहमें राखी है । भरमकी दोरी तोरी धरमको भयो धोरी, परमसों प्रीतिजोरी करमको साखीहै॥४॥ . सवैया इकतीसा--जैसोजो दरव ताके तैसे गुन परजाय, तासों मिलत पेंमिले न काहु पानसों। जीव वस्तु चेतन करम जड जाति भेद, अमिल मिलाप ज्यों नितंब जुरे कानसों । ऐसो सुविवेक जाके हिरदे प्रगट भयो, ताको भ्रम गयो ज्यों तिमिर भग्यो भानसों। सोई जीव करम को करतासौ दीसे अकरता कयाहै शुद्धता के परवानसों ॥५॥
छप्पय छंद--जीव ज्ञान गुण सहित, आपगुण परगुण . ज्ञायक । आपा परगुन लखै, नाहिं पुद्गल इहिलायकाजीव रूप चिद्रूप, सहज पुद्गल अचेत जड, जीव अमूरति सूर तीक पुद्गल अंतर बड ॥ जवलग न होय अनुभव प्रगट तबलंग मिथ्या मतिलसै । करतार जीव जड करमको, सु. बुधि बिकाशक भ्रम नसै ॥६॥ - दोहा-करता परिनामी दरब, करम रूप परिनाम ।
" .किरिया परजै की फिरन, वस्तु एकत्रयनाम ॥७॥
का कर्म किया करे, क्रिया कर्म करतार । नाउ भेद बहुविधि भयो, वस्तु एक निरधार ॥ ८॥ एक कर्म कर्तव्यता, करै न कर्ता दोय ।।
दुधा दरब संत्ता सुतो, एकभाव क्यों होय ॥९॥ ...सबैया इकतीसा--एक परिनाम के न करता दरव दोय, पोय परिनाम एक दर्व न धरतु है । एक करतृति दोय दर्व