Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit
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.. . ( २६ ) मानी ऐसो आश्रव अगाध जोधो रोपि रनथंभ.ठाढो भयो मूछ मोरिके ॥ आयो तिहि थानक अचानक परमधाम, ज्ञान नाम सुभट सबायो बल फोरिके। आश्रव पछार्यो रन यंभतोरि डार्यो ताहि, निरखी वनारसी नमत कर जोरिके५३
सवैया तेइसा-दार्वत आभाव सो कहिये जहिं पुद्गल जीव प्रदेस गरासै । भावित आश्रव सो कहिए जहिं राग विरोध विमोह विकासै ॥ सम्यक पद्धति सो कहिये अहिं दर्बित भांवित आव नास । जोनकली प्रगटै तिहि थानक अंतर बाहरि और न भासै ॥ ५४ ॥.. .. . चौपाई छंद--जो दरवाश्रवरूप न होई । जह भावाश्रय
भाव न कोई ॥ जाकी दशा ज्ञानमय लहिये । सो ज्ञातार . निराश्रव कहिये ॥ ५५॥ ..' सवैया इकतीसा--जेते मन गोचर प्रगट बुद्धि पूरवक' 'भाव तिन्हके विनासवेको उद्यम धरतु है। याहि भांति परंपरिनतिको पतन करे, मोख को यतन करै भौजल तरतु है। ऐसै ज्ञानवन्तते निराश्रव कहावै सदा, जिन्हको सुजस सुविचक्षण करतु है ।। ५६ ॥ . . !
सवैया इकतीसा--ज्यों जगमें विचरै मतिमंद सुछन्दसदा वरतै बुध तैसे। चंचल चित्त असंजत वैन, शरीर सनेह जथावत जैसे॥ भोग संजोग परिग्रह संग्रह, मोह विलास करै जहाँ ऐसे। पछत शिष्य आचारजसों, यह सम्यकवन्त निराश्रव कैसें ॥ ५७॥ . : ..
सवैयां इकतीसा-पूरव अवस्था जे करमबंध कीने अब, 'तेई उदै आई नाना भांति रस देत हैं। कई शुभ शाता

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