Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit
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( १११) सवैया इकतीसा-ग्रीषममें धूप थितसीतमें अक पचीत,भूखेधरेधीर प्यासे नीरन चहतु है। डंस मसकादिसों न डरें भूमि सैन करें, वध बंध बिथामें अडोल व्है रहतु है ॥ चर्या दुखभरे तिन फाससों न थरहरें, मल दुरगंधकी गिलान न गहतुहै। रोगनको न करें इलाज एसो मुनिराज, वेदनीफे उदे ए परीसह सहतुहै ॥ ५६ ॥ ___ कुंडलिया-एते संकट मुनि लहे, चारित मोह उदोत । लज्जा संकुच दुख धरे, नगन दिगंवर होत॥नगन दिगंबर होत, श्रोत रति स्वाद न सेवे । त्रियसनमुख दृग रोकि, मान अपमान न बेवे॥थिर व्हे निर्भय रहे, सहे कुवचन जग जेते।भिक्षुक पद संग्रहे, लहे मुनि संकट एते ॥ ५७॥ दोहा-अल्प ज्ञाने लघुता लखे, मति उतकरष विलोइ।।
ज्ञानाबरन उदोत मुनि, सहे परीसह दोइ ॥५८॥ सहे अदरसन दुरदसा, दरसन मोह उदोत ।
रोके उमग अलाभ की, अंतराय के होत ॥ ५९॥ सवैयाइकतीसा-एकादश वेदनीकी चारितमोहकीसात, ज्ञानावरनी की दोइ एक अंतरायकी। दंसन मोहकी एक द्वाविंसति बाधा सब, केई मनसाकी केइ वाकी केई कायकी । कारकों अलप काहसों वहोत उनी साता, एकहीं समेमें उदे आवे असहायकी । चर्याथित सय्यामांहि एक सीत उस्नमांहि, एकदोइहोहि तीनि नांही समुदायकी॥६॥ दोहा-नानाविध संकटदशा, सहिसाधे शिव पंथ ।
थिविरकल्प जिनकल्पधर,दोऊसम निगरंथ॥ ६१ ॥ . जो मुनि संगतिमें रहे, थविरकल्पिसोजानि।

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