Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit
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लेत चित चेन ॥ करिसुचितन श्रृंगार वनावत, तिय परयंक: मध्य सुखसेन । मन मथ कथा उदर भरि भोजन, ए नव " वाडि जान मतजेनः ॥ ३८॥
. दोहा-जो विवेक विधि आदरे, करे न पापा रंभ। ....... ! सो अष्टम प्रतिमाधनी कुगति विजेरनथंभ॥३९॥ ... .........चौपाई। • जो दसंधा:परिग्रहको त्यागी । सुख संतोषःसहज बैरागी.॥ . समरसचिंतितकिंचितग्राही। सोश्रावकनौप्रतिमावाही॥४०॥
दोहा-परकों पापा रंभ को, जो न देइ उपदेश। ....... ..सोदशमीप्रतिमासहित, श्रावकविगतकलेश॥४१॥
::..: .. चौपाई :.:... . जो सुछन्द बरतें तजिं डेरा। मठ मंडप महिकरे बसेरा ॥ उचित अहार उदंड बिहारी। सोएकादश प्रतिमाधारी॥४२॥ .
दोहा-एकादश प्रतिमादशा, कही देशव्रत-माहि ... ...... वही अनुक्रम मूलसों, गही सु छूटी नाहि ॥४३॥
षट प्रतिमा ताई जघन, मध्यम नब परजंत । उत्तम दशमी ग्यारमी, इति प्रतिमा विरतंत ॥४४॥
.... चौपाई।............ - एक कोट पूरव गनिलीजें । तामें आठ बरष घट कीजै ॥ यहउत्कृष्टकाल थिति जाकी। अंत मुहूर्त जघन्य दसाकी४५॥ : दोहा-सत्तरिलाख करोड़मिति,छप्पन सहस कराोड़ी .
एते वरष मिलाइ करि, पूरब संख्या जोड़ि ॥४६॥ . . . अंतर मुहुरत है. घडी, कछुक घाटि उतकृष्ट । एक समें एकाउली, अंत मुहूर्त कनिष्ट ॥४७॥ ..

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