Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit

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Page 117
________________ (११६) जा में अनंत नृत्य नृत्य में अनंत ठट है । ठट में अनंत कला कला में अनंत रूप रूपमें अनंत सत्ता ऐसो जीव नट है ॥ १० ॥ दोहा-ब्रह्म ज्ञान आकाश, उडे समति षग होड। जथा लकति उहिसघरे, पार न पावे कोइ ॥९१ ॥ चौपाई। ब्रह्मा ज्ञान नभ अंत न पाये । लमति परोक्ष कहालों धावे ।। जिहिविधिसमयलारजिनिकीनोतिन्हकेनासधरेअवतीनो९२ अथ कवि त्रयी कथन नाम। सवैया इकतीसा-कुंद कुंदाचारज प्रथम गाथा वद्ध करे, सोलार नाटक विचारी नाम दयो है । ताही के परंपरा अस्कृतचंद भये तिन्ह, संसकृत कलस सलारि सुख लयो । है ॥ प्रगट्यो बनारसी गृहस्थ लिरी माल अवकिये हैं कवित्त हिए बोध वीज वयो है। शवद अनादि तामें अरथ अनादि जीव नाटक अनादियों अनादिहि को भयो है ॥ ९३ ॥ . अथ कविव्यवस्था कथन । चौपाई। अथ कछु कहूं यथास्थ बानी । सुकवि कुकविकीकथाकहानी। प्रथम सुकवी कहानै सोई। परमारथ रसबरने जोई॥९४॥ कलपित वातहिएनहिंसाने। गुरु परंपरा रीति बखाने । . सत्यारथ लैली नहि छडे । वृषाबादसोंप्रीतिन मंडे९५॥ दोहा-छंद शब्द अक्षर प्ररथ, कहे सिद्धांत श्वान। . जोइहि विधि रचनारचे सोहै सुकवि सुजान ॥९६॥

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