Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit

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Page 115
________________ ( ११४ ) कुंडलिया-बानी जहां निरक्षरी, सप्तधातुमलनाहि केस रोमनखनहि वढ़े,परमउदारिक माहि॥ परमउदारिक माहिं जांहि इंद्रिय विकार नसि, जथाख्यात चारित प्रधान थिर सुकल ध्यान ससि । लोकालोक प्रकास,करन केवल रजधानी॥ सो तेरम गुनथान,जहां अतिशयमयवानी॥७९॥ दोहा-यह सजोग गुनथानकी, रचना कही अनूप ।' अब अयोग केवल कथा, कहों यथारथरूप ॥ ८॥ सवैया इकतीसा-जहां काहू जीबकौं असाता उदे साता नाहि, काहूको असाता नांहि साता उदे पाइये । मन वच कायलों अतीत भयो जहां जीव,जाको जस गीत जगजीत रूप गाइये ॥ जामें कर्म प्रकृतिकी सत्ता जांगी जिनकीसी, अतकाल द्वेसमे में सकल खिपाइये । जाकी थिति पंचलघु अक्षर प्रधानसोइ,चौदहो अयोगी गुन थाना ठहराइयो।८१॥ दोहा-चौदह गुनथानक दशा, जगवासी जियसूल। आश्रब संवर भाव द्वे, बंध मोक्ष के मूल ॥ ८२॥ . चौपाई। आश्रय संबर परनतिजोलों। जगत निवासि चेतनातोलों॥ आश्रव संवरविधि विवहारा।दोऊभवपथ शिवपथधारा८३॥ आश्रव रूप बंध उतपाता। संबर ज्ञान मोष पद दाता ॥ जा संवरसों आश्रय छीजे । ताको नमस्कार अवकीजे८४॥ सर्वया इकतीसा-जगतकं प्रानी जीव व्है रह्यो गुमानी ऐसो, आश्रव असुर दुःख दानी महा भीम है । ताको परताप खडिवको परगट भयो, धर्मको धरैया कर्म रोगको 'हकीम है ॥ जाके परभाव आगे भागे परभाव सब, ना

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