Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit

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Page 114
________________ ( ११३) चौपाई। .:. ... ... ... . केवल ज्ञान निकट जहँ आवे। तहां जीव सब मोहषि पावे॥ प्रगटे यथाख्यात परधाना।सोद्वादशम छीनगुनथाना ॥७३॥ दोहा--षट लत्तम अट्ठम नबन, दश एकादश बार। ... अंतर मुहुरत एक वा, एकसमै थितधार ॥७४ ॥ * . छीन मोह पूरन भयो, करि चूरन चित चाल। - अब सजोग गुनथानकी, बरनों दला रसाल ॥७५॥ .. सबैया इकतीसा-जाकी दुःखदाता घाली बोकरी बिनसगई, चोकरी अघाती जरी जेवरी समान है । प्रगटभयो अनंत दंसन अनंत ज्ञान, बीरज अनंत लुख सत्ता समाधान है ॥ जामें आउ नाम गोंत वेदनी प्रकृति ऐसी, एक्यासी चोरासी वा पंचासी परवान है । सो हे जिन केवली जगत • वासी भगवान, ताकी जो अवस्था सो सजोगी गुन थानहै।७६। सवैया इकतीसा-जो अडोल परजंक मुद्रा धारी सरवथा, अथवा सुकाउसग्ग मुद्रा थिरपालहै । खेत लपरल कर्मभ कृतिके उदे पाए; बिना डग भरे अंतरिक्ष जाकी चाल है ॥ .. जाकी थिंत पूरब करोडि आठवर्ष घाट, अंतरमुहूरति जघन्य . 'जग जालहै । सो है देव अठारह दूषन रहित ताकौं,बनारसी कहे मेरी वंदना निकाल है ॥ ७७ ॥ ...... कुंडलिया-दूषन अद्वारह रहितं, सो. केवलि संजोग । जनम मरण जाके नहीं, नहिं निद्रा भय रोग ॥ नहिं निद्रा.भय रोग, लोग विस्मय नमोहमति । जराखेद परस्वेद, नांहि मद वैर विषै रति ॥ चिंता नांही सनेह, नाहिं जह प्यास न भूखन । थिर समाधि सुख सहित, रहित अटार:: ह दूषन ॥ ७८॥

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