Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit

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Page 87
________________ चौपाई। जब सुबोध घटमें परकासे । तंव रस विरस विषमता नासे ।। नबरल लखे एकरस मांही। तातेंविरसभाव मिटिजाही८३॥ दोहा-सवरस गर्भित मूलरस, नाटक नाम गरंथ । __ जाके सुनत प्रवान जिय, समुझे पंथ कुपंथ ॥ ८४ ॥ चौपाई। . . बरते ग्रंथ जगत हितकाजा। प्रगटे अमृतचंद मुनिराज ॥ तब तिन्हग्रंथ जानिअति नीकारचीबनाइसंस्कृतटीका॥८॥ दोहा-सर्व विशुद्धि द्वारलों, आए करत. वखान । तव आचारज भक्तिसों,करे ग्रंथ गुन गान ॥ ८६ .॥ . . . . चौपाई। . . . . : अदभुत ग्रंथ अध्यातम बानी। समुझे कोऊ बिरलाज्ञानी ॥ यामें स्यादनाद अधिकाराताकाजो कीजेविसतारा॥८॥ तोगरंथ अति शोभा पावे । बह मंदिर यहकलसकहावे ॥ तबचितअमृतवचनगढखोले। अमृतचंदआचारजवोले।८८ दोहा-कुंदकुंद नाटकविषे, कह्यो दरब अधिकार। . :. .. .स्थादबादने साधि, कहाँ अबस्था द्वार ।। ८९, ॥ कहों मुकतिपदकीकथा, कहों मुकतिकोपंथ। ... जैसे.घृत कारज जहां, तहाँ कारन दधिपंथ ॥१०॥ : . . . . . अर्थ स्पष्ट । चौपाई।. . . . . अमृतचन्द वोले मुदृवानी । स्यादवादकी सुनो कहानी ॥ कोंऊ कहै जीव जगमांही। कोऊकहैजीवहनांही॥९१॥ दोहा-एक रूप कोऊ कहै, कोऊ अगनित अंग। . . ___ छिन भंगुर कोऊ कहै, कोऊ कहै अभंग ॥ ९२॥

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