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(९२) १२ अध्याय साध्य साधक द्वार
PAURAT
PARATI
सवैया इकतीसा-जोइ जीव वस्तु अस्ति प्रमेय अगुरु लघु, अजोगी अमूरतिक परदेशवंतहै । उतपतिरूप नाश रूप अविचल रूप, रतनत्रयादि गुणभेदसों अनंत है ॥ सोई जीव दरव प्रवान सदा एकरूप, ऐसो शुद्ध निह, सुभाउ बिरतंत है । स्यादवाद माहि साधि पद अधिकार कह्यो,अव आगे कहिवेकों साधक सिधंत है ॥ १७ ॥ ... दोहा-साधि शुद्ध केवल दशा, अथवा सिद्ध महंत। .
साधक अविरत आदि वुध,छीन मोह परजंत ॥१८॥ . सवैया इकतीसा-जाको अधो अपूरव अनवर्ति करनको, भयो लाभ भई गुरु वचनकी बोहनी । जाके अनंतानुबंध क्रोध मान माया लोभ, अनादि मिथ्यात मिश्र समकित मोहनी ॥ सातों पराकति खपी किंवा उपसमी जाके, जगी उरमांही समकित- कला सोहनी । सोइ मोक्ष साधक कहायो ताके सरवंग,प्रगटीशगतिगुन थानक आरोहनी ॥१९॥ सोरठा-जाको सुगति समीप, भई भव स्थिति घट गई।
ताकी मनसा सीप, सुगुरु मेघ मुकता वचन ॥२०॥ दोहा-ज्यों बरषे बरषा समे, मेघ अखंडित' धार । . त्यों सदगुरु बानी खिरें, जगत् जीव हितकार ॥२१॥
सवैया तेईसा-चेतनजी तुमजागि विलोकहूं, लाग रहे कहांमाया कि तांई।आय कहींसु कहींतुमजाउगे,माया रहेगि जहां कि तहांई।मायातुह्मारिनजाति नपातिन सकिवेल