Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit
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( १०६ ) मांहि कछु षिपहि, कछुक उपसम करि रक्खे । सो छय उपसमवंत, मिश्र समकित रस चक्ख । पट प्रकृति उपशमइवाषिपइ, अथवा छय उपशम करे। सातई प्रकृति जाके उदय, सो वेदक समकित धरे ॥ १३ ॥ . दोहा-छय उपसम वरते त्रिविध, वेदक चार प्रकार ।
छायक उपशम जुगलयुत,नौधासमकितधार ।। १४ ॥ चारिषिपहित्रय उपसमाह,पणषयउपसमदोइ। बै षट उपसम एक यों,षय उपसम त्रिकहोइ॥ १५ ॥ जहांचारिप्रकरती षिपहि, द्वे उपसम इकवेद। षय उपसमवेदक दशा, तासु प्रथम यह भेद॥ १६ ॥ पंच षिपे इक उपसमै, इक वेदे जिहि ठौर । सो पय उपसम वेदकी, दशादुतिय यह और ॥१७॥ षय षट वेदे एक जो, व्यायक वेदक सोइ । षटउपसमइकप्रक्रतिविद,उपसमवेदकहोइ॥ १८॥ खायक उपसमकी दशा,पूरव पट पदमांहि । कहीप्रगट अब पुनरुकति,कारन वरनीनांहि ॥ १९ ॥ षयउपसमवेदकषिपक,उपसमसमकितचारि।
तीनचारिइकइकमिलत,सव नवभेदविचारि॥२०॥ सोरठा-अवनिहचे विवहार,अरुसामान्य विशेषविधि। ____कहों चारि परकार, रचना समकित भूमिकी ॥२१॥
सवैया इकतीसा-मिथ्या मति गांठि भेद जगी निरमल ज्योति, जोगसों अतीत सोतो निहचे प्रवानिये, वहे दुन्द दसासों कहा जोग मुद्रा धरे, मति श्रुति ज्ञान भेद विवहार मानिये ॥ चेतना चिहन पहिचान आपपर वेदे, पौरुष

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