Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit

View full book text
Previous | Next

Page 97
________________ ... ( ९६ ) प्रतीति रंभा, उदैविष, कामधेनु, निर्भरा सुधाप्रमोद धन है। ध्यान चाप प्रेम रीति मदिरा विवेक वैद्य शुद्धभाव चन्द्रमा तुरंगरूप मन है । चौदह रतन ये प्रकट होइ जहां तहां, ज्ञान के उदोत घट सिन्धुको मथन है ॥ ४६॥... दोहा-किये अवस्थामें प्रकट, चौदह रतन रसाल । कछु त्यागे कछु संग्रह, विधि निषेधकीचाल ॥४७॥ रमा संष विष धनुः सुरा, वेद धेनु हय हेय। : . .नतिरंभा गज कल्पतरु, सुधा सोम आदेय ।। ४८ ॥.. इह विधिजो परभाव विष, वमे रमे निजरूप। .... सो साधक शिवपंथको, चिदविवेक चिद्रूप ॥ ४९ । .. कवित्त छन्द-ज्ञानदृष्टि जिन्हके घट अंतर, निरखे दरव सुगुन परजाइ । जिन्हके सहजरूप दिनदिन प्रति, स्यादवाद. साधन अधिकाइ ॥जे केवल प्रतीत मारग मुख, चिते चरन . राखें ठहराइ । ते प्रवीन करि छिन्न मोह मल, अविचल. होइ परमपद पाई ॥ ५० ॥ , सवैया इकतीसा-चाकसो फिरत जाको संसार निकट आयो, पायो जिनि सम्यक मिथ्यात नाश करिके । निरदुंद मनसा सुभूमि साधि लीनी जिनि, कीनी. मोख कारन अवस्था ध्यान धरिके।सोई शुद्ध अनुभौ अभ्यासी अविना-. शी भयो, गयो ताको करम भरम रोग गारिके । मिथ्यामति आपनो सरूप न पिछाने तामें, डाले जगजालमें अनंत काल भारके ॥५१॥ . ::::: सवैया इकतीसा-जे जीव दरबरूप तथा परजायरूप, दोउ नै प्रवान वस्तु शुद्धता गहतहै । जे अशुद्धभावनिके त्यागी

Loading...

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122