Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit

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Page 90
________________ ( ८९ . ) नानारूप प्रतिबिंवकी झलक दीसे जदपि तथापि आरसी बिमल जोइए ॥ २ ॥ सवैया इकतीसा - कोउ अज्ञ कहे ज्ञेयाकार ज्ञान परिनाम, जोलों विद्यमान तौलों ज्ञान परगट है । ज्ञेय के विनाश होत ज्ञानको विनास होइ, ऐसी बाके हिरदे मि यात की अलट है ॥ तासों समकित वत कहे अनुभौ कंहान, परजे प्रवान ज्ञान नानाकार नट है । निरविकलप अविस्वर दरब रूप, ज्ञान ज्ञेय वस्तु सों अव्यापक अघट है ॥ ३ ॥ * י; + 'सवैया इकतीसा - कोउ मन्द कहे धर्म अधर्म आकास. काल, पुदगल जीव सब मेरो रूप जग में । जाने न मरम .. निज मानें आपा पर बस्तु, बंधे दिढ़ करम धरम खोवे डग में ॥ समकिती जीव सुद्ध अनुभौ अभ्बासें तातें, परको ममत्व त्याग करें पगपग में। अपने सुभावमें मगनरहे आठों जाम, धारावाही पथिक करावे मोख मगमें ॥ ४ ॥ .. सवैया इकतीसा - कोउ, सठ कहे जेतो ज्ञेयरूप परवान, तेतो ज्ञान तातें कहुं अधिक न और है । तिहूं कालपर क्षेत्र व्यापी परनयो माने, आपा न पिछाने ऐसी सिथ्या दृग दौर है ॥ जैन मती कहे जीव सत्ता परवान ज्ञान, ज्ञेयसों अव्यापक जगत सिर मोर है । ज्ञानकी प्रभामें प्रतिबिंबित विविध ज्ञेय, जदपि तथापि थित न्यारी न्यारी ठौर है. ॥ ५ ॥ सवैया इकतीसा - कोउ शून्यबादी कहे ज्ञेयके विनास होत, ज्ञानको विनाश होइ कहो कैसे जीजियें । तातें. जीवितव्यता. की थिरता निमित्त अब, ज्ञेयाकार परिनमनिको नास की

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