Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit

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Page 86
________________ ( ८५ ) ११ अध्याय स्याद्वादद्वार । दोहा - सरख विसुद्धीद्वारयह, कह्यो प्रगट शिवपंथ । कुंद कुंद सुनिराज कृत, पूरन भयो गरंथ ॥ ७७ ॥ चौपाई | कुंद कुंद मुनिराज प्रवीना । तिन्ह यह ग्रंथ इहांलोंकीना ॥ गाथा बद्ध सुप्राकृतबानी। गुरु परंपरा रीति वखानी ॥७८॥ भयो ग्रंथ जगमें विख्याता । सुनत महासुख पावहिज्ञाता ॥ जे नवरस जगमोहि वखाने । ते सवरसमें सारसमाने ॥७९॥ दोहा - प्रगटरूप संसार में, नवरस नाटक होइ । नवरस गर्वित ज्ञान में, विरला जानै कोइ ॥ ८० ॥ सवैया इकतीसा - सोभा में सिंगार बसै बीर पुरुषारथ में, हिये में कोमल करुनारस बखानिये | आनन्द में हास्य रुंड मुंड में बिराजे रुद्र, बीभछ तहां जहां गिलान मन आनिये | चिन्ता में भयानक अथाहता में अदभुत, माया की अरुचि तामें शान्त रस मानिये । येई नव रस भव रूप येई भाव रूप इन्ह को विलेक्षण सु दृष्टि जग जानिये ॥ ८१ ॥ छप्पय छंद - गुन विचार सिंगार, वीर उद्दिम उदार रुष । करुना सम रसरीति, हासहिरदे उछाह सुख ॥ अष्ट करम दल मलन, रुद्र बरते तिहि थानक । तन विलेछ बीभक्ष, बुंद दुखदसा भयानक । अद्भुत अनंत वल चिंतवत, शांत सहज बैराग धुव ॥ नवरस विलास परगास तब, जब सुवोध घट प्रगट हुव ॥ ८२ ॥

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