Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit
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(७२) जूठके झरोखेझूलि,फूलीफिरेममताजंजीरनिसों जकरी८७॥
कवित्त छन्द-केई कहै जीव छिन भंगुर, केई कहै करम करतार । केई कर्म रहित नित जंपहि, नय अनंत नाना परकार ॥ जे एकंत गहै ते मूरख, पंडित अनेकांत पखधारं । जैसे भिन्न भिन्न. मुक्तागन, गुनसों गहत कहावे हार ॥ ८८ ॥ . दोहा-जथा सूतसंग्रहविना, मुक्तमाल नाह होइ। .
तथा स्याद्वादी विना, मोख न साधे कोई ॥ ८९ ॥ पद सुभाउ पूरबउदे, निहचे उदिम काल। .
पक्षपात मिथ्यातपथ, सरवंगी शिव चाल ॥ ९०॥ सवैया इकतीसा-एक जीव वस्तु के अनेक रूप गुन नाम, निरजोग शुद्ध पर जोग सो अशुद्ध है । वेद पाठी ब्रह्म कहै मीमांसक कर्म कहै, शिवमति शिव कहै 'वोध कहे बुद्ध है ॥ जैनी कहे जिन न्यायवादी करतार कहै,छहाँ दरसनमें बचनको विरुद्ध है। वस्तुको सरूप पहिचाने सोइ परबीन, बचनके भेदभेद मानेसोइ शुद्ध है ॥ ९१॥ .
सवैया इकतीसा-वेदपाठी ब्रह्म माने निहचै स्वरूप गहै, मीमांसक कर्म माने उदैमें रहतुहै । बोधमति बुद्धमाने सूक्षम सुभाउ साथै, शिवमती शिवरूप कालको हरतुहै ।। न्याय ग्रंथके पढैया थापे करतार रूप, उदिम उदीरी उर आनंद लहतुहै । पांचो दरसनी तेतो पोषे एक एक अंग, जैनी जिनपंथी सरवंगी नै गहतुहै ॥ ९२ ॥
सवैया इकतीसा-निहचै अभेद अंग उदै गुनकी तरंग, उद्यम की रीति लिये उद्धता सकति है । परजाय रूपको

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