Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit

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Page 72
________________ (७१) जबयह वचन प्रगटसुन्यो,सुन्यो जैनमतशुद्ध। · . . तब इकांत वादी पुरुष, जैन भयो प्रति बुद्ध ॥ ८२॥ .सवैया इकतीसा-एक परजाय एक समैमें विनसिं जाइ, दूजी परजाय दूजै समै उपजति है। ताको छल पकार के बोध कहै.समै समे, नवो.जीव-उपजे पुरातन की पति है। . ताते मानै करमको करता है और जीव, भोगता है और वाके हिए. ऐसी मतिहै । परजै प्रधानको सरवथा दरबजाने, ऐसे दुरबुद्धिको अवश्य दुरगति है ॥ ८३॥ दोहा-दुर्बुद्धी मिथ्यामती, दुर्गति मिथ्या चालः । ... गहि एकंत दुर्बुद्धिसों,मुकति न होइत्रिकाल ॥ ८४॥ ..कहै अनातमकी कथा, चहै न आतम शुद्धि। " रहै अध्यातमसो विमुख, दुराराधि दुर्बुद्धि ॥८५॥ सवैया इकतीसा-कायासे विचार प्रीति मायाहि में हारि जीति, लिये हठशीत जैसे हारिलकी लकरी। चूंगुल के जोर जैसे गोह गहि रहै भूमि, त्योंही पाई गाडे में न .. छांडे टेक पकरी ॥ मोहकी: मरोरसों भरमको न ठोरपावे, धाव चिहु और ज्यों बढावै जाल मकरी । ऐसी दुर्बुद्धि भूलि मूठ के झरोखे झूलि, फूली फिरे ममता जंजीरनि सों जकरी॥८६॥ .... :.:. . ... सवैया इकतीसा-बात सुनि चौकउठे बातहिसों भौकी उठे, बातसो नरम होइ बातहींसोअकरी । निंदा करेसाधुंकी प्रशंसा करे हिंसककी, साता माने प्रभुता असाता माने फकरी मोखन सहाइ दोख देखै तहां पेंठि जाई, कालसो डराई जैसे नाहरसों बकरी । ऐसी दुरबुद्धिः भूलि

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