Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit

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Page 41
________________ (४०) सवैया इकतीसा-जामें धूमको न लेस बातको न परवेस, करम पतंगनिको नाशकरे पलमें । दसाको न भोगन सनेहको संयोग जामें, मोह अंधकारको विजोग जाके थलमें॥ जामें नतताइ नहीं रागरंक ताइरंच, लह लहे समता स. माधिजोग जलमें । ऐसी ज्ञानदीपकी सिखा जगी अभंग रूप, निराधार फुरीपेदुरी है पुदगलमें ॥ १४ ॥ सवैया इकतीसा-जैसोजो दरबतामें तैसोही सुभाउसधे, कोउ दर्ब काहुको सुभाउ न गहतु है । जैसे संख उज्वल विविध वर्णमाटीभखे, माटीसो न दीसे नितउज्वल रहतुहै ॥ तैसे ज्ञानवंत नाना भोग परिग्रह जोग, करतविलास न अज्ञानता लहतुहै । ज्ञानकला दूनी होइ दुन्द दसा सूनीहोइ ऊनी होई भौथिति बनारसी कहतुहै॥१५॥ सवैया इकतीसा-जोलोंज्ञानको उदोत तोलों नही बंधहोत, वरते मिथ्याततब नानाबंध होहिहै । ऐसोभेद सुनिके लग्योतूं विषै भोगनिसों, जोगनिसों उद्यमकी रीतितें बिछोहि है ॥ सुनो भैया संतत कहे में समकितवंत, यहुतो एकंत परमेसरकी दोहिहै । विषेसों विमुख होइ अनुभो दशा आराहि,मोषसुख ढोहि ऐसी तोहि मति सोहि है ॥ १६ ॥ चौपाई-ज्ञानकला जिनके घट जागी।तेजगमांहिसहज वैरागी॥ज्ञानी मगन विषै सुखमाही। यहु विपरीत संभवै नां ही ॥ १७ ॥ दोहा-ज्ञान सहित वैराग्य वल,शिव साधैसमकाल। __ ज्यों लोचन न्यारे रहैं, निरखै दोऊनाल ॥ १८॥ चौपाई-मूढ़ कर्मको कर्त्ता हो । फलमभिलाष धरै फल

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