Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit
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(६३) गमें अखंडित प्रवाहको डहरहै। तासों कहै यह मेरो.दिन यह मेरी घरी, यह मेरोई परोई मेरोई पहर है । खहको खजानो जोरे तासों कहे मेरोगेह, जहां वसे तासों कहे मेरोही सहरहै। याहि भांति चेतन अचेतनकी संगतिसों,सांचसों विमुख भयो झूठमें बहरहै ॥ २४॥ - दोहा-जिन्हके मिथ्या मति नहीं,ज्ञानकला घटमांहि। . परचे आतम रामसों, ते अपराधी नांहि ॥२५॥
सवैयाइकतीसा-जिन्हके धरमध्यानपावकप्रगटभयो,संसे मोह विभ्रम विरष तीन्यो वढेहैं। जिनकी चितौनि आगे उदे स्वान भैसि.भागे,लागेन करमरज ज्ञानगज चढ़े हैं। जिन्हिकी समुझिकी तरंग अंग अगममे,आगममें निपुन अध्यातम मे कढ़ेहैं। तेई परमारथी पुनीत नर आठो जाम, राम रस गाढ़ करे यहै पाढ़ पढ़े हैं ॥ २६ ॥
सबैया इकतीसा-जिन्हकी चिहुंटी चिमटासी गुन चूनवे कों, कुकथाके सुनवेकों दोउ कान मढ़े हैं । जिन्हको सरल चितकोमल वचनबोले, सोम दृष्टि लिये डोले मोम कैसे गढेह।। जिन्हिकेसगति जगिअलख अराधिबेंकों;परम समाधि साधि वेगो मन बढ़ेहैं। तेई परमारथी पुनीत नर आठोंजाम, राम रस गाद करे यहै पाढ़ पढ़े हैं ॥ २७॥ दोहा-राम रसिक अरु रामरस, कहन सुननकोंदोइ।
जवसमाधि परगटभई, तब दुबिधानहिंकोइ ॥२८॥ : नंदन बंदन थुति करन,श्रवन चिन्तवन जाप ।
पढन पढावनउपदिसन,बहुबिधक्रिया कलाप॥२९॥ शुद्धातम अनुभौ जहां, सुभाचार तिहिनांहि ।

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