Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ ( ३६ ) सवैया इकतीसा - चित्र सारी न्यारी परजंक न्यारो सेज. न्यारी, चादर भी न्यारी इहां झूटी मेरी थपना ! प्रतीत अबस्था सैन निद्रा वही कोड पैन बिद्यमान् पलक न यामें च छपना ॥ श्वास औ सुपनदोउ निद्राकी अलग वृके, सू सब अंग लखि आतम दरपना । त्यागी भयो चेतन अचेत नता भाव त्यागी, भाले दृष्टि खोलि के संभाले रूप · " अपना ॥ ९२ ॥ दोहा - इहि विधिजे जागै पुरुष, ते शिवरूप सदीव | जे सोहि संसार में, ते जगवासी जीव ॥ ९३ ॥ 1 सवैया इकतीसा - जब जीव सोवै तचसमुझे सुपन सत्य, वह झूठलागे जबजागै नींद खोड़के। जांगे कहै यह मेरा तन यहमेरी सोंज ताहू झूठमानत मरणथिति जोइके। जाने निज मरम भरन तबसू झूठ, बूझैं जब और अवतार रूप होड़के । बाहु अवतारकी दशामें फिरि यहे पेच, याहि भांति झूठो जग देख्यो हम ढोड़के ॥ ९४ ॥ सवैया इकतीसा - पंडित विवेक लहि एकता की टेक गहि दुंद अवस्थाकी अनेकता हरतु है । मतिश्रुत अबधि इत्यादि विकलप मेटी, निरविकलप ज्ञान मनमें धरतु है ॥ इंद्रियजनित सुख दुःखसों विमुख व्हैके, परमको रूप है करम निर्जरतु है । सहज समाधि साधि त्यागी परकी उपाधि आतम आराधि परमातम करतु है ॥ ९५ ॥ सवैया इकतीसा - जाके उर अंतर निरंतर अनंत दर्द, भाव भासि रहेपें सुभाउ न टरंतु है । निर्मलसों निर्मल सुजीवन प्रगट जाके, घट में अघटरस कौतुक करतु है ॥ जाने

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122