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सज्जन तप प्रवेशिका...xlix
क्रिया से भाव रोग के क्षय रूप फल की सिद्धि नहीं होती। ऐसी क्रियाएँ वंध्य स्त्री के समान निष्फलदायी होती है।
8. आसंग- किसी एक क्रिया से चिपके रहना या उसका आग्रह रखना आसंग दोष है। गुणस्थान आरोहण में सहायक किसी एक क्रिया में रुचि उत्पन्न होने से उसमें गुंद की तरह चिपके रहना आसंग क्रिया दोष है। ऐसी क्रिया करने से गुणस्थान में आरोहण नहीं होता। ___क्रिया करते समय कई दुर्भाव एवं शंकाएँ हमारे हृदय में उत्पन्न होती है। जिन छोटी-छोटी शंकाओं के कारण साधक क्रिया का यथोक्त फल प्राप्त नहीं कर पाता अत: यथासंभव ऐसे दोषों से बचने का प्रयास करना चाहिए एवं तपाराधना के साथ निर्दिष्ट क्रियाओं को सम्यक प्रकार से करना चाहिए।
इस पुस्तक में आगम काल से अब तक प्रचलित विभिन्न तपों का प्रामाणिक शास्त्रोक्त स्वरूप प्रस्तुत किया गया है। इस वर्णन के माध्यम से आराधक वर्ग अपनी इच्छा एवं सामर्थ्य अनुसार तप का चयन करते हुए उनका वहन कर सकता है। इसमें कई ऐसे तप हैं जिनका आचरण वर्तमान में दुःसाध्य होने से नहीं किया जा सकता तदुपरांत उनके वर्णन करने का मुख्य उद्देश्य उन तपों के स्वरूप से परिचित करवाना एवं आगमोक्त तप की महत्ता को उजागर करना है।
इसमें लौकिक इच्छा पूर्ति के उद्देश्य से किए जाने वाले एवं लोकोत्तर दृष्टि प्रधान ऐसे दोनों प्रकार के तपों की चर्चा भी विस्तार से की गई है।
इस कृति का मुख्य उद्देश्य जिनवाणी के माध्यम से भवि जीवों को कर्म निर्जरा के मार्ग पर अग्रसर करना है। तप ही धर्म मार्ग में प्रवेश करने का Entry Gate और अंतिम लक्ष्य तक पहुँचाने वाला Exit Gate है। इस तप निर्देशिका में हर वर्ग की अपेक्षा से तप बताए गए हैं। जिससे तप मार्ग पर प्रथम बार आरूढ़ होने वाला व्यक्ति अपने सामर्थ्य अनुसार लघु तप का चयन कर सकें तथा तप साधना के अभ्यस्त साधक उत्कृष्ट कोटि की तप साधना के द्वारा शीघ्रातिशीघ्र मोक्ष लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। अंतत: आराधक वर्ग इसके माध्यम से जिन उपदिष्ट तप मार्ग पर अग्रसर होकर कर्म विमुक्त बन पाएं, इसी मनोभिलाषा के साथ।