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68...सज्जन तप प्रवेशिका वैसा ही मानना, स्वीकार करना अथवा अध्यात्ममार्ग की यथार्थता के सम्बन्ध में दृढ़ निष्ठा एवं श्रद्धा होना दर्शन प्रतिमा है।
दर्शन-प्रतिमा का आराधक एक महीना सम्यक्त्व का निरतिचार पालन करता है। वह अपनी आस्था में इतना दृढ़ होता है कि विभिन्न मत-मतान्तरों को जानता हुआ भी उधर आकृष्ट नहीं होता। वह अपने अध्यवसायों को अत्यन्त विशुद्ध बनाये रखता है।
2. व्रत-प्रतिमा - व्रत-प्रतिमा का आराधक दो महीने तक पाँच अणुव्रतों एवं तीन गुणव्रतों का निरतिचार पालन करता है तथा चार शिक्षाव्रतों को भी स्वीकार करता है; किन्तु उनमें सामायिक और देशावगासिक व्रत का यथाविधि सम्यक् पालन नहीं कर पाता। वह अनुकम्पा आदि गुणों से युक्त होता है।
3. सामायिक-प्रतिमा - सामायिक-प्रतिमा धारण करने वाला साधक तीन महीने तक प्रतिदिन नियम से तीन बार सामायिक करता है। इस प्रतिमा में वह सामायिक एवं देशावकासिक व्रत का सम्यक् रूप से पालन करता है परन्तु अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा आदि विशिष्ट दिनों में पौषधोपवास की आराधना भली-भाँति नहीं कर पाता। ___4. पौषध-प्रतिमा - पौषध-प्रतिमा स्वीकार करने वाला उपासक अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व तिथियों पर पौषध-व्रत का पूर्णरूपेण पालन करता है। इस प्रतिमा की आराधना का समय चार मास है।
5. नियम-प्रतिमा - इसे कायोत्सर्ग प्रतिमा अथवा दिवा मैथुन विरतप्रतिमा भी कहा जाता है। इसमें पूर्वोक्त प्रतिमाओं का निर्दोष पालन करते हुए पाँच विशेष नियम लिये जाते हैं - 1. स्नान नहीं करना 2. रात्रि-भोजन नहीं करना 3. धोती की एक लांग नहीं लगाना 4. दिन में ब्रह्मचर्य का पालन करना तथा रात्रि में मैथुन की मर्यादा निश्चित करना 5. अष्टमी, चतुर्दशी आदि किसी पूर्व दिन में रात्रि-पर्यन्त देहासक्ति त्याग कर कायोत्सर्ग करना।
इस प्रतिमा में कामासक्ति, भोगासक्ति अथवा देहासक्ति कम करने का प्रयास किया जाता है। इस प्रतिमा की आराधना का समय पाँच मास है।
6. ब्रह्मचर्य-प्रतिमा - इस प्रतिमा को अंगीकार करने वाला गृहस्थ छह माह तक ब्रह्मचर्य व्रत का पूर्ण रूपेण पालन करता है तथा ब्रह्मचर्य की रक्षा के निमित्त कुछ नियमों का पालन करता है जो इस प्रकार है- 1. स्त्री के साथ