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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...109
मास
जाप
साथिया| खमा. कायो. | माला श्री उत्पादपूर्वाय नमः | 14 | श्री आग्रायणीपूर्वाय नमः श्री वीर्यप्रवादपूर्वाय नमः श्री अस्तिप्रवादपूर्वाय नमः श्री ज्ञानप्रवादपूर्वाय नमः श्री सत्यप्रवादपूर्वाय नमः श्री सत्यप्रवादपूर्वाय नमः | श्री कर्मप्रवादपूर्वाय नमः श्री प्रत्याख्यानपूर्वाय नमः श्री विद्याप्रवादपूर्वाय नमः | श्री कल्याणप्रवादपूर्वाय नमः श्री प्राणावायपूर्वाय नमः
| क्रियाविशालपूर्वाय नमः 14. | लोकबिन्दुसारपूर्वाय नमः . 15. ज्ञान पंचमी तप
जैन मत में दूज, अष्टमी आदि कुछ तिथियों का विशेष महत्त्व है। इसके पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण माने गये हैं तथा उन्हें विशिष्ट आराधनाओं के साथ भी जोड़ दिया गया है। तदनुसार पंचमी को ज्ञान आराधना की तिथि मानते हैं। यह मान्यता सर्व परम्पराओं में समान है। भारतीय संस्कृति की सभी धाराएँ नए ज्ञान का अर्जन करने हेतु इसी तिथि को श्रेष्ठ मानती हैं। अत: इस दिन सम्यक् ज्ञान की विशिष्ट आराधना करनी चाहिए। यह तप सम्यक् ज्ञान की उपासना निमित्त सर्व साधकों के लिए अवश्य करणीय है। वर्तमान में इस तप की आराधना बहलता से देखी जाती है।
विधिमार्गप्रपा आदि ग्रन्थों में इस तप की विस्तृत चर्चा की गयी है।