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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...207 10. पैंतालीस आगम तप . जिस प्रकार सूर्य के अस्त होने पर दीपक के प्रकाश से काम लिया जाता है वैसे ही केवलज्ञान रूपी सर्य के अस्त होने पर आगम रूपी दीपक से स्वपर का उपकार किया जाता है। आगम आप्त पुरुषों की साक्षात वाणी का संकलन है। आप्त पुरुष (तीर्थङ्कर) अर्थ रूप में उपदेश देते हैं, उसे गणधर सूत्र रूप में गुम्फित करते हैं। आगम ग्रन्थों में सूत्रबद्ध वाणी का संग्रह होता है।
इस अवसर्पिणी काल के अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीर के शासन में 11 गणधर हुए, उनमें पाँचवें गणधर सुधर्मास्वामी ने द्वादशांगी रची है, जो इस समय बारह अंग आदि आगम के रूप में विख्यात है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में 45 आगम माने गये हैं उनकी गणना इस प्रकार है - 11 अंग सूत्र, 12 उपांग सूत्र, 10 प्रकीर्णक सूत्र, 6 छेद सूत्र, 4 मूल सूत्र, 1 नन्दीसूत्र और 1 अनुयोगद्वार सूत्र। वर्तमान में यह तप सामूहिक रूप में अधिक प्रचलित है।
विधि - प्रचलित सामाचारी के अनुसार इसमें 45 उपवास एकान्तर पारणा अथवा सामर्थ्य अनुरूप पूर्ण करें।
दूसरी रीति के अनुसार इसमें लगातार 45 एकासना करें।
इस तप के दौरान प्रत्येक आगम की पूजा करते हुए भक्ति अवश्य करनी चाहिए।
उद्यापन - यह तप पूर्ण होने पर आगम ग्रन्थों की शोभा यात्रा निकालें। नन्दीसूत्र एवं भगवतीसूत्र की स्वर्ण मोहर से पूजा करें। प्रत्येक आगम की चाँदी के सिक्के एवं वासक्षेप से पूजा करें। जिनप्रतिमा के समक्ष 45-45 ज्ञान के उपकरण चढ़ायें। 45 आगम की बड़ी पूजा करवायें और गुरु पूजा करें।
• सुविहित परम्परानुसार इस तप में नीचे लिखे अनुसार प्रत्येक दिन पृथक्-पृथक् जाप आदि करें
साथिया खमा. कायो. माला 1. ॐ नन्दी सूत्राय नमः
51 51 51 20 2. ॐ अनुयोगद्वार सूत्राय नमः
62 62 3. ॐ दशवैकालिक सूत्राय नमः 4. ॐ उत्तराध्ययन सूत्राय नमः 36 36 36 20 5. ॐ ओघनियुक्ति सूत्राय नमः
जाप
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